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उपद
पद
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सयमेव बुद्धिमया । आलोएयवमिण कीरत के गुण कुणई? ॥ ६८३ ॥ उववासोवि हु एक्कासणस्स चाया ण सुंदरो पार्य । णि- उपवासस्य | चमिणं उववासो णमित्तिगमो जओ भणिआ ॥६८४॥ अहो निच्चं तवोकम्मादिसुत्तओ हंदि एवमेयंति । पडिवज्जेयव्वं खलु पन्या
नैमित्तिदिसु तबिहाणाओ ॥६८५॥ आउत्ताईएसुवि आउक्काइयाइजोगसुज्झवण । पवयणखिसा एयम्स वज्जणं चेव चितमियं ॥६८६॥
कता इच्चाइसु गुरुलाघवणाणे जायम्मि तत्तओ चेव । भवणिव्या जीवो सज्झायाई समायरई ॥ ६८७ ।। गंभीरभावणाणा सद्धाइसओ
अकरण
नियमः तओ य सकिरिया । एसा जिणहिं भणिआ संजमाकरिया चरणरूवा ।। ६८८ ।। सम्म अण्णायगुण सुदररयणम्मि होइ जा सद्धा ।। | तत्तोऽणतगुणा खलु विण्णायगुणम्मि बोद्धव्या ॥ ६८९ ॥ तीएवि तम्मि जत्तो जायइ परिपालणाइविसओत्ति । अचंतभावसारो
यादि | अइसयओ भावणीयमिणं ॥६९०॥ एवं सज्झायाइसु णिचं तह पक्खवायकिरियाहि । सइ सुहभावा जायइ विसिट्टकम्मक्खओ णियमा दृष्टान्ताः ॥६९१। तह जह ण पुणो बंधइ पायाणायारकारणं तमिह । तत्तो विमुज्झमाणो मुज्झइ जीवो धुयकिलेसो ।। ६९२॥ इत्तो अक-18 रणनियमो अन्नहिवि वण्णिओ ससत्थम्मि । सुहभावविसेसाओ न चेवमेसो न जुत्तोत्ति ॥ ६९३ ॥ जे अत्थओ अभिण्णं अण्णत्था सद्दओऽवि तह चेव । तम्मि पओसो मोहो विसेसओ जिणमयठियाणं ॥ ६९४ ।। सव्वप्पवायमूलं दुवालसंग जओ समक्खायं । रयणागरतुल्लं खलु तो सव्वं सुंदरं तम्मि ॥ ६९५ ॥ पावे अकरणनियमो पायं परतन्निवित्तिकरणाओ। नेओ य गांठभए भुज्जो तदकरणरूवो उ ॥ ६९६ ॥ णिवसंति सेट्टिपमुहाण णायमेत्थं मुया उ चत्तारि । रइबुद्धिरिद्धिगुणसुंदरीउ परिसुद्धभावाओ ॥६९७।। साकेए रायसुया सड्डी रतिसुंदरित्ति रूववई । नंदणगसामिणोढा सुयाएँ रागो उ कुरुवतिणो ॥ ६९८ ।। जायण दाणा विग्गह । ॥ १८५॥ गहरागनिवेयणम्मि संविग्गा । तन्निबत्तणचिंतण चाउम्मासम्मि वयकहणा ॥ ६९९ ॥ पडिवालणं तु रण्णो तीए तह देसणा अस
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