________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उपदेश मालायां
दुःखं,
॥२२४ ॥
सुविहियाणं ॥ २९५ ।। जुगमित्तंतरदिट्ठी, पयं पयं चक्खुणा विसोहितो । अव्वक्खित्ताउत्तो, इरियासमिओ मुणी होई ॥ २९६ ॥15 सम्यक्त्वं, कज्जे भासइ भासं, अणवज्जमकारणे न भासइ य । विगहविसुत्तियपरिवज्जिओ अ जइ भासणासमिओ ॥ २९७ ॥ बायालमेस
चतुर्गतिणाओ, भोयणदोसे य पंच सोहेइ । सो एसणाइसमिओ, आजीवी अन्नहा होइ ॥ २९८ ।। पुब्धि चक्खु परिक्खिय, पमज्जिउं जो
स्थाम, ठवेइ गिण्हइ वा । आयाणभंडनिक्खेवणाइ समिओ मुणी होइ ॥ २९९ ॥ उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणए य पाणविही । सुवि
समितयः वेइए पएसे, निसिरंतो होइ तस्समिओ ॥ ३०० ।। कोहो माणो माया, लोभो हासो रई य अरई य । सोगो भयं दुगुंछा, पच्चक्खकली इमे सव्वे ॥३०१।। कोहो कलहो खारो, अवरुप्परमच्छरो अणुसओ अ । चंडत्तणमणुवसमो, तामसभावो अ संतावो ॥३०२।। निच्छोडण निभंछण निराणुवत्तित्तणं असंवासो । कयनासो अ असम्म, बंधइ घणचिकणं कम्मं ।। ३०३ ॥ युग्मम् ।। माणो |मयऽहंकारो, परपरिवाओ अ अत्तउकरिसी । परपरिभवोऽवि य तहा, परस्स निंदा असूआ य ॥ ३०४ ॥ हीला निरुवयारितणं निरवणामया अविणओ अ । परगुणपच्छायणया, जीवं पाडंति संसारे ।। ३०५ ।। युग्मम् ॥ माया कुडंग पच्छन्नपावया कूड कवड वंचणया । सव्वत्थ असम्भावो, परनिक्खेवावहारो अ ॥३०६॥ छल छोम संवइयरो, गूढायारत्तणं मई कुडिला । वीसंभघायणंपिय
भवकोडिसएसुवि नडंति ॥ ३०७ ॥ युग्मम् ।। लोभो अइसंचयसीलया य किलिट्ठत्तणं अइममत्तं । कप्पन्नमपरिभोगो, नट्ठविनडे काय आगलं ।। ३०८ ॥ मुच्छा अइबहुधणलाभया य तब्भावभावणा य सया । बोलंति महाघोरे, जरमरणमहासमुदंमि ।। ३०९॥18
॥२२४। &॥ युग्मम् ।। एएसु जो न वट्टिज्जा ( वट्टे), तेणं अप्पा जहडिओ नाओ । मणुआण माणणिज्जो, देवाणवि देवयं हुज्जा ॥३१०॥
जो भासुरं भुअंग, पयंडदाढाविसं विघट्टेइ । तत्तो चिय तस्संतो रोसभुअंगोवमाणमिणं ॥ ३११ ॥ जो आगलेइ मत्तं, कयंतकालो
For Private and Personal Use Only