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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा तायाः दशशास्त्यां णुदाहु सब्वेहिं । पच्चक्खमादिएहि माणेहि ? दुहावि णणु दोसो ॥११४६।। भिन्निंदियावसेओ (आ) रूवादी सुहुमववहितादी य । धमे कहमवगच्छति सब्वे जुगवं नेत्तादिणेकण ? ॥ ११४७॥ अन्नं अतिंदियं से पच्चक्खं तेण जाणई सव्वं । तब्भावम्मि पमाणाऽभावाला संग्रहणी.| सदेयमेवेय सद्धेयमेवेयं ।। १९४८ ।। सति तम्मि सबमेतावदेव तस्सऽत्तनिच्छओ किह णु । सिद्धं अतिंदियपि हु ओहादि ण सव्वविसयं ते सर्वज्ञता ॥ ११४०॥ जह सचमत्तविसयपि ओहिनाणं न धम्ममादीणं । गाहयमिय केवलमवि अन्वेसिमगाहगं किण्णो ? ।। ११५० । याचसिद्धिः ॥१२९॥ सध्वविसयंति माण किमत्थ ज णोवलब्भती अन्न । ओहीऍ अणुवलद्धेहिं धम्ममादीहिं वभिचारो ॥ ११५१ ।। जम्हा पच्चक्खेणं में ण सव्वरूवावि । दि) जाणणं जुत्तं । सम्बन्नुनिच्छओ अत्तणो य तम्हाऽसपक्खोऽयं ।। ११५२ ॥ पच्चक्खमाइएहिं जाणइ सव्वे-IP हिमह मतं ते तु । आगमकयस्समा णणु को वा एवं न सच्चन्नू ? ॥ ११५३ ।। अन्नं च नज्जइ ततो केण पमाणेण सव्वणाणिति ।। जो पच्चक्खेणं जं परविनाणं न पच्चक्खं ॥ ११५४ ॥ अणुमाणेणावि कहं गम्मति पच्चक्खपुब्वगं जेण । तल्लिंगलिंगिसंबंधगह11णतो चेव गमगंति ।। ११५५ ॥ण य पच्चक्खेण तओ घेप्पड लोगम्मि अन्ननाणस्स । निच्चपरोक्खत्तणओ लिंगवि अतो च्चिया| नियमो ॥ ११५६ ।। गम्मइ न यागमातो जं पुरिसकतो स होज्ज निच्चो वा ?। पुरिसकओविय सव्वन्नुरत्थपुरिसेहिं भइयव्यो ॥ ११५७ ॥ जइ सव्वन्नुकओ सो तदसिद्धो हंदि ! तस्स कह सिद्धी ? । इतरेतरासयो इह दोसो अनिवारणिज्जो तु ॥ ११५८ ।। अह रत्थापुरिसकओ ण पमाणं रेवणाइकव्वं व । अपमाणाओ य तओ तदवगमो सम्बधाऽजुत्तो ॥११५९ ।। अह निच्चो सव्वन्नू ॥१२९१ उसहो एमादि अत्थवायो उ । अह णो अणिच्चमेसो कित्तिमभावाभिहाणाओ ॥ ११६० ।। निच्चे य तम्मि सिद्धे तत्तो च्चिय धम्ममादिसिद्धीओ । सबन्नुकप्पणावि हु अपमाणा निष्फला चव ।। ११६१ ॥ पडिमेहगं च माणं सोऽसबन्नुत्ति णो पइन्नाओ । For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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