SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्यां ॥१८४८ ।। जइदेहस्सऽह पांडा निययविहारातो सान कि होति ? | उवगारिगा तई अह एत्थवि भणिओ उ उवगारो ॥१०४९॥डा वस्त्रायूप धर्म न हरति तहाभूतं वत्थं तेणा पओयणाभावा । खुद्दहरणं च तट्टिगकुंडिगमादीमुवि समाणं ॥ १०५० ॥ वोसिरिएसु न दोसो तट्टि करणसिद्धि संग्रहणी. गमादीसु अह उ वत्थेवि । तुल्लं चिय वोसिरणं साहणभावो य परलोगे ॥ १०५१ ॥ अपमत्तस्स न नासइ, नहेवि न जायती तहिं। है| सोगा । मुणियभवसरूवस्स चत्तकलत्तादिगंथस्स ।। १०५२ ।। अह दीभवब्भासा सेहप्पायस्स संभवो अस्थि । सो तट्टिगादितुल्लो ॥१२३॥ | चोएयब्बो न बुद्धिमता ॥ १०५३ ॥ जो चयइ सयणवग्ग हिरनजायं मणोरमे विसए । जिणवयणणीतिकुसलो तस्स अवेक्खा कहं। वत्थे ? ॥१०५४॥ लज्जह जमिस्थिमादीण तेण तं गिण्डइत्ति सावक्खा । लुचियसिरस्स भिक्खं हिंडतस्सह का लज्जा ? ॥१०५५।। पता किं ण तं चएई ? उबगारणिरिक्खणा जहाऽऽहा । भणितो य तओ पुब्धि संजमजोगाण हेउत्ति ॥ १०५६ ॥ तम्मतपदाणणं जमकज्जं तस्स तत्थवि पवित्ती । इय अणिहुतचित्तस्स न होइ समणत्तणं समए ॥१०५७॥ संसारविरत्तमणो जोग्गो समणत्तणस्स | जं भणितो । रागादिपवित्तीय य तट्टिगमादीसुवि समाणं ॥ १०५८ ।। रागादिसियमणो किं वा न करेइ अणिहुतो जीवो ? । किं तेणं ? अणिदाणा अकज्जसिद्धित्ति बइमेत्तं ॥१०५९ ॥ संजमजोगनिमित्तं परिजुन्नादीणि धारयंतस्स । कह ण परिस्सहसहणं? जहणो सइ निम्ममत्तस्स ॥ १०६०॥ नग्गत्तणमह सुत्ते भणियं, ण जहादियं तयं हाइ । उवचरिए य परिस्सहसहणंपि तहाविहं | पावे ।। १०६१ ॥ णेगतेणाभावादण्णादीणं खुधादियाणपि । सहणं अणेसणिज्जादिचागतो इहवि तह चेव ।। १०६२॥ सिय द पावई अणिटुं एवं इत्थीपरीसहपसंगा। णो सुत्तरबाधा निवारणादिह पसंगस्स ।। १०६३ ॥ नवि किंचिप्पडिसिद्धं अणुनायं वा ॥१२३। (वा वि) जिणवरिंदेहिं । मोत्तुं मेहुणभावं न विणा सो रागदोसेहिं ।। १०६४ ॥ फासुगमवि असणादी ण कदाइवि अन्नहेह भोत्तव्यं । % 4 KHESAROK For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy