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संक्रमकरणं
॥२६१॥
कर्मप्रकृतौ | है। एवं बंधणकरणे परूविए सह हि बंधसयगणं । बंधविहाणाहिगमो सुहमाभगंतु लहुं होई ॥१०२ ।। इति बन्धनकरणम् ।।
म अथ संक्रमकरणम्-सो संकमोत्ति वुच्चइ जं बंधणपरिणओ पओगणं । पगयंतरत्थदलियं परिणमयइ तयणुभावे जं
॥१०३॥ दुसु वेगे दिट्ठिदुर्ग बंधण विणावि सुद्धदिहिस्स । परिणामह जीसे तं पगईइ पडिग्गहो एसा ।। १०४॥ मोहदुगाउगमूलपगडीण न परोप्परमि संकमणं । संकमबंधुदउबट्टणालिगाईणकरणाई ॥१०५।। अंतरकरणाम्म कए चरित्तमोहेऽणुपुब्बिसंकमणं ।
अन्नत्थ सेसिगाणं च सव्वहिं सब्वहाबंधे।।१०६॥ तिसु आवलियासु समऊणियासु अपाडग्गहा उ संजलण दुसु । आवलियासुं पढमठिईए | सेसासुवि य वेदो ॥१०७।। साइअणाईधुवअदुवा य सव्वधुवसंतकम्माणं । साइअधुवा य सेसा मिच्छावेयणियनीएहिं ।। १०८॥ | मिच्छत्तजढा य पडिग्गहम्मि सव्वधुवबंधपगईओ । नेया चउविगप्पा साई अधुवा य सेसाओ ॥१०९।। पगईठाणेवि तहा पडिग्गहो | संकमो य बोद्धब्बो । पढमंतिमपगईणं पंचसु पंचण्ह दोवि भवे ॥११०॥ नवगच्छक्कचउके नवगं छकंच चउसु बिइयम्मि । अनयरस्सि अन्नयरावि य वेयीयगोएसु ॥१११।। अढचउरहियवसिं सत्तरसं सोलसं च पनरसं । वज्जिय संकमठाणाइं होंति तेवीसई मोहे ॥११२।। सोलस बारसगड व वीसग तेवीसगाइगे छच्च । वज्जिय मोहस्स पडिग्गहा उ अट्ठारस हवन्ति ॥११३।। छव्वीससत्तवीसाण संकमो होइ चउसु ठाणेसु । बावीसपन्नरसगे एकारसइगुणवीसाए ॥११४ ॥ सत्तरस एकवीसासु संकमो होइ पन्नवीसाए। नियमा चउसु गईसु नियमा दिट्ठी कए तिविहे ॥ ११५ ॥ बावीसपनरसगे सत्तगएक्कारसिगुणवीसासु । तेवीसाए नियमा पंचवि पंचिं. दिएसु भवे ॥ ११६ ॥ चोदसगदसगसत्तगअट्ठारसगे य होइ बाचीसा। नियमा मणुयगईए नियमा दिट्ठी कए दुविहे ॥ ११७ ॥ तेरसगनवगसत्तगसत्तरसगपणगएक्कवीसासु । एकावीसा संकमइ सुद्धसासाणमीसेसु ॥ ११८ ।। एत्तो अविसेसा संकमंति उवसा
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॥२६॥
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