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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिंकृते श्रीचन्द्र- तु साहिए तंसे । हासाईणं संखेज्ज बच्छरा ते य कोहम्मि ॥ ५५२ ॥ पुंसंजलणाण ठिई जहाणया आवलिदुगेणूणा | अंतो जोग- 11 | तीणं पलियासंखंस इयराणं ।। ५५३ ।। मूलठिईण अजहण्णा सत्तह तिहा चउव्विहो माहे। सेसविगप्पा साईअधुवा ठितिसंकमेल पञ्चसंग्रह होति ।। ५५४ ॥ तिविहो धुवसंतीणं चउव्विहो तह चरित्तमोहाणं । अजहमो सेसासुं दुविहा सेसावि दुविगप्पा ॥ ५५५ ॥ कर्मप्रकृती इति स्थितिसंक्रमः ॥३१६॥ | ठितिसंकमोव्व तिविहो रसंमि उबट्टणाई विबेओ । रसकारणओ नेयं घाइत्तविसेसणऽभिहाणं ॥५५६॥ देसग्घाइरसणं पग ईओ होंति देसघाईओ । इयरेणियरा एमेव ठाणसम्मावि नेयव्वा ।। ५५७ ॥ सव्वघाई दुठाणो मीसायवमणुयतिरियआऊणं । इग दुट्ठाणो सम्मम्मि तदियरोऽबासु जह हेट्ठा ॥ ५५८ ॥ दुट्ठाणो चिय जाणं ताणं उक्कोसओवि सो चेव । संकमइ वेयगेवि हु ★ासेसासुकोसओ परमो ।। ५५९ ।। एगट्ठाणजहवं संकमइ पुरिससम्मसंजलणे | इयरामुं दोठाणिय जहन रससंकमे फडं ।। ५६०।।* बंधिय उक्कोसरसं आवलियाओ परेण संकामे । जावंतमुहू मिच्छो असुभाणं सव्वपयडीणं ।। ५६१ । आयात्रुज्जोवोरालपढमसंघयणमणुदुगाऊणं । मिच्छसम्मा य सामी सेसाण जोगि सुभियाणं ॥ ५६२ ॥ खवगस्संतरकरणे अकए घाईण जो उ अणुभागो। तस्स अणंतो भागो सुहुमेगिदिय कए थोवो ।। ५६३ ।। सेसाणं असुभाणं केवलिणो जो उ होइ अणुभागो। तस्स अणंतो भागो | असण्णिपंचिदिए होइ ॥ ५६४॥ सम्मदिट्ठी न हणइ सुभाणुभागं दुवेवि दिहोणं । सम्मत्तमीसगाणं उकोसं हणइ खवगोवि ॥३१६॥ ॥ ५६५ ।। घाइणं जे खवगा जहण्णरससंकमस्स ते सामी । आऊण जहण्णठिईबन्धाओ आवली सेसा ॥ ५६६ ॥ अणतित्थुव्वलणाणं संभवणा आवलीइ परएणं । सेसाणं इगि सुहुमो घाइयअणुभागकम्मंसो ॥ ५६७ ।। साइयवज्जो अजहण्णसंकमो पढमदुइय सलमान RARY - -- For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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