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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म - % विहाय ण य उभयरूवता जम्हा । भेयामेयविगप्पो तम्हा णेओ असव्वातो ॥ ३४१॥ धम्मम्मि नियत्तंते जइ णो दव्वं नियत्तई। जीवस्य संग्रहणी. भेओ । अह उ णियत्तइ एवं तओ अमेउत्ति कहमुभयं ? ।। ३४२ ॥ उभयं अणुहवसिद्धं भणियमिणं अणुहवोऽवि कह तम्मि ? परिणामिता लंघद वियप्पजुयलंति हंत तो सो नदाभासो ।। ३४३ ॥ मोत्तृणमणुभवं किं पमाणभावो वियप्पजुयलस्स ? । तदणुहवस्सवि एवं | अपमाणत्तम्मि किं तेण? ॥ ३४४ ॥.तहवि य पमाणभावो जड़ तस्सितरस्स णेति का जुती ? । अह उ अबाहियोधत्तणं न इय- | रेण चाधातो ॥ ३४५॥ तस्स तु ण तेण वाधा तदभावे तस्स चेवऽभावाओ। एगंतनिच्चनिच्चम्मि भाविओ चेव सो किंच ६॥ ३४६ ॥ धम्मे नियत्तमाणे नियनए इह कहंचि दव्बंपि । तम्मि य अणियर्तते ण णियत्तति सबहा सोऽवि ॥ ३४७ ।। दीसह | पच्चक्खं चिय एवं वक्कम्मि उज्जुए होते । अंगुलिदबम्मि परं भावेतव्वं इहेकेणं ।। ३४८ ॥ वक्कत्तमंगुलीओ कहंचि अभि | ति तीऍ जोगाओ। भिन्नपि अवत्थंतरभावे तत्तो नियत्तीओ ॥ ३४९ ॥ तं चिय कहचवत्थंतरेवि तं तुल्लबुद्धितो हंदि । एगतेदाणऽन्नत्ते भिज्जेज्ज इमीवि तह चेव ।। ३५० ॥ भिन्नच्चिय अवियप्पा एगतेणेव एस तु विगप्पो । तुल्लत्ति अप्पमाणं गिहीतगहणा | दिदोसाओ ॥३५१।। न हु ता गिहीतगाही तस्साभावा तदाऽविसयतो उ । अज्झारोवेणवि को गेहइ तं तम्मि तदभावा ॥३५२॥ |अत्तुल्लं अविगप्पं न य दिटुं भावतो जओ तंपि । ता कहमज्झारोवो नियमेणऽनस्प किं नेवं ? ॥ ३५३ ॥ संकारविसेसातो सव्व1.८०॥ मिण हंदि तम्मिावि समाणं । जं सोवि लक्षणं वा होज्ज वियप्पो व ? कि अन्नं ॥ ३५४ ॥ किंचोवादाणं से ? तं चिय जइहै। ॥८० | वत्थुणो कहमवत्थु ? । तपि हु कहंचि चत्यु तो...णावत्थू विरोहो वा ॥ ३५५ ।। अह सो निधिसओ चिय ण पयट्टइ किमिह 15 छट्ठखंधेवि । तहसणुत्तरद्धं च किं ततो तप्पवित्ती य? ॥ ३५६ ।। जद्द अन्नमविसओ से इय तंपि ण जुज्जती ततो नियमा । तत्तो ४ % % For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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