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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit रूपणं श्रीचन्द्र-18 निदाणं एगहीणं तं ।। ३८२ ॥ अज्जोगिसतिगाणं, उदयवईणं तु तस्स कालेणं । एगाहिंगेण तुल्लं, इयराणं एगहीणं तं ॥ ३८३॥ठावर्गणानिपिकृत ठिइखंडाणइखुडं, खीणसजोगीण होइ जं चरिमं । तं उदयवईणहियं, अन्नगए तूणमियराणं ॥ ३८४ ॥ जं समयं उदयवई, I8| पञ्चसंग्रहेका | खिज्जइ दुच्चरिमयन्तु ठिइठाण । अणुदयवइए तम्मी, चरिमं चरिमंमि जं कमइ ।। ३८५ ॥ जावइयाउ ठिईओ जसंतलोभाणहाकमप्रकृतील पवर्तते । तं इगिफड्टुं संते, जहन्नयं अकयसढिस्स ॥ ३८६ ॥ अणुदयतुल्लं उव्वलणिगाण जाणिज्ज दीहउव्वलणे । हासाईणं एगं, ॥३०६॥ | संछोभे फडडुगं चरम ।। २८७ ।। बन्धावलियाईयं, आवलिकालेण बीइठिइहितो । लयठाणं लयठाणं, नासेई संकमेण तु ॥३८८।। | संजलणतिगे दुसमय हीणा दो आवलीण उक्कोसं । फड्डु बिईय ठिइए, पढमाए अणुदयावलिया ।। ३८९ ।। आवलियदुसमऊणा |मेत फड्डु तु पढमठिइविरमे । वेयाणवि चे फड्डा ठिईदुगं जेण तिण्हंपि ।। ३९० ॥ पढमठिईचरमुदये, बिइयठिईए व चरमसं| छोभे । दो फड्डा वेयाणं, दो इगि संतऽहवा एए ॥ ३९१ ॥ चरमसंछोभसमए, एगा ठिइ होइ थीनपुंसाणं । पढमठिईए तदंते, | पुरिसे दोआलिदुसमणं ।। ३९२ ॥ इति श्रीपंचमं बन्धविधिद्वारम् ॥ ॥ अथ कर्मप्रकृतिसंग्रहः ॥ बंधणकरणम्-णमिऊण सुयहराणं वोच्छ करणाणि बंधणाईणि । संकमकरण बहुसो अइदि| सिय उदयसंते जे ॥ ३९३ ॥ आवरणदेससव्वक्खएण दुविहेह वीरियं होइ । अहिसंधिअणहिसंधी अकसाइ सलेस उभयपि ॥३९४॥ | होइ कसाइवि पढम इयरमलेसीवि जं सलेसं तु | गहणपरिणामफंदणरूवं तं जोगओ तिविहं ॥ ३९५ ॥ जोगो विरियं थामो ||३०६॥ उच्छाह परकमो तहा चेट्ठा । सत्ती सामत्थंति य जोगस्स हवंति पज्जाया ॥ ३९६ ॥ पनाए अविभाग जहन्नविरियस्स बीरियं / | छिन्नं । एकेकस्स पएसस्स असंखलोगप्पएससमं ॥ ३९७ ॥ सव्वप्पवीरिएहिं जीवपएसेहिं वग्गणा पदमा। बीयाइ वग्गणाओ For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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