SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चाशक-1&| जिणवरहिं पण्णत्तं । संघमि चव पूया सापण्णणं गणणिहिम्मि ।। ३८७ ।। एसा उ महादाणं एस च्चिय होति भावजण्णात्तिाला अष्टम मूलम्. एसा गिहत्थसारो एस च्चिय संपयामूलं ॥ ३८८ ॥ एतीए फलंणेयं परमं व्वाणमेव णियमेण । सुरणरसुहाई अणुसंगियाई इह प्रतिष्ठा पञ्चाशकर ॥ २४ ॥ किसिपलालं व ॥ ३८९ । कयमेत्थ पसंगणं उत्तरकालोचि इहण्णपि । अणुरूवं कायव्वं तित्थुण्णतिकारग णियमा ॥ ३९० ।। उचिओ जणोवयारो विसेसओ णवरि सयणवग्गम्मि । साहम्मियवग्गम्मि य एयं खलु परमवच्छल्लं ।। ३९१ ॥ अट्ठाहिया य महिमा सम्म अणुबंधसाहिगा केई । अण्ण उ तिण्णि दियहे णिओगशो चेव कायव्यो ॥३९२ ।। तत्तो विसेसपूयापुव्वं विहिणा पडिस्सरोमुयणं । भूयबलिदीणदाणं एत्थंपि ससत्तिओ किंपि ।। ३९३ ॥ तत्तो पडिदिणपूयाविहाणओ तह तहेह कायव्वं । विहिताणुट्ठाण खलु भवविरहफलं जहा होति ॥ ३९४ ॥ पइट्ठाविही सम्मत्तो ८ ॥ ॥अथ नवमपंचाशकम् ॥९॥ नमिऊण बद्धमाणं सम्म संखेचओ पवक्खामि । जिणजताएँ विहाणं सिद्धिफलं सुत्तणीईए ॥ ३९५ ॥ दंसणमिह मोक्खंगं परमं | एयस्स अट्टहायारो । णिस्संकादी भणितो पभावणतो जिणंदेहिं ।। ३९६ ॥ पवरा पभावणा इह असेसभावाम तीऍ सब्भावा । | जणजत्ताय तयंगं जं पवरं ता पयासोऽयं ।। ३९७ ॥ जत्ता महसवो खलु उद्दिस्स जिणे स कीरइ जो उ । सो जिणजत्ता भण्णइ मातीऍ विहाणं तु दाणाइ ।। ३९८ ॥ दाणं तवावहाणं सरीरसकार मो जहासत्ति । उचितं च गीतवाइय थुतिथोत्ता पेथणादी या| ॥ ३९५ ।। दाणं अणुकंपाए दीणाणाहाण सत्तिओ णेयं । तित्थंकरणातेणं साहूण य पत्तबुद्धीए ॥ ४०० ॥ एकासणाइ णियमा -CASS For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy