________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उपदेश मालायां ॥२१॥
| वड्डइ, गुणसेढी तत्तिया ठाइ ॥६५॥ जइ दुक्करदुकरकारउत्ति भणिओ जहडिओ साहू । तो कीस अज्जसंभूअविजयसीसेहिं बाधःभवः नवि खमिअं? ॥ ६६ ॥ जइ ताव सचओ सुंदरुत्ति कम्माण उवसमेण जई । धम्म बियाणमाणो, इयरो कि मच्छरं वहइ? ॥६७।। अर्थः क्षमा,
विषयाः अइसुट्टिओत्ति गुणसमुइओत्ति जो न सहइ जइपसंसं । सो परिहाइ परभवे, जहा महापीढपीढरिसी ॥ ६८ ।। परपरिवायं गिण्हइ, अट्ठमयविरल्लणे सया रमइ । डज्झइ य परसिरीए, सकसाओ दुक्खिओ निच्चं ॥ ६९ ॥ विग्गहविवायरुइणो, कुलगणसंघेण बाहिरकयस्स । नत्थि किर देवलोणव देवसमिइस अवगासो ॥ ७० ॥ जइ ता जणसंववहारवज्जियमकज्जमायरइ अन्नो । जो तं पुणोद विकत्थइ, परस्स बसणेण सो दुहिओ ॥ ७१ ॥ सुझुवि उज्जव (म) माणं, पंचव करिति रित्तयं समणं । अप्पथुई परनिंदा, जिब्भोवत्था कसाया य ॥७२॥ परपरिवायमईओ, दूसइ वयणेहिं जेहिं जेहिं परं । ते ते पावइ दोसे, परपरिवाई इअ अपिच्छो ॥ ७३ ।। थद्धा छिद्दप्पेही, अवण्णवाई सयंमई चवला । वंका कोहणसीला, सीसा उव्वेअगा गुरुणो ॥ ७४ ॥ जस्स गुरुम्मि न भत्ती, न य बहुमाणो न गउरवं न भयं । नवि लज्जा नवि नेहो, गुरुकुलवासेण किं तस्स? ॥ ७५ ॥ रूसइ चाइज्जतो, वहई हियएण अणुसयं भणिओ। न य कम्हि करणिज्जे, गुरुस्स आलो न सो सीसो ॥७६ ॥ उघिल्लगमूअणपरिभवेहि अइभणिय| दुटुभणिए । सत्ताहिया सुविहिया, न चेव भिंदंति मुहरागं ।। ७७ ॥ माणसिणोवि अवमाणवंचणा ते परस्स न करंति । सुहदुक्खुग्गिरणत्थं, साहू अहिब्ध गंभीरा ॥ ७८ ॥ मउआ निहअसहावा, हासदवविवज्जिया विगहमुका । असमंजसमइबहुअं, न
॥२१ ॥ | भणति अपुच्छिआ साहू ॥ ७९ ॥ महुरं निउणं थोवं, कज्जावडिअं अगब्धियमतुच्छं। पुब्धि मइसकालयं, भणंति ज धम्मसंजुत्तं ॥ ८० ॥ सर्द्वि वाससहस्सा, तिसत्तखुत्तोदयेण धोएण। अणुचिणं तामलिणा, अन्नाणतवुचि अप्पफलो ।।८१॥ छज्जीवकायवहगा,
CORRC
For Private and Personal Use Only