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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir संग्रहणी अह अणुरूवो धम्मी सुतचेतण्णस्स माइबुद्धी तु । णो तव्यतिरेगेणं तस्स सुते पावइ अभावो ॥ ११२॥ण हि धम्मंतरवित्ती है जीवे दिट्ठा धम्माणमेत्थ लोगम्मि । तदभावपसंगातो न धम्मरहितो जतो धम्मी ॥११३ ॥ ण य तकज्जपि इमं तस्सक्काराणु-मजीवत्वस्य वित्तऽभावातो। तब्भावम्मिवि कज्जे सति न य हेतूवि तदवत्थो ॥ ११४ ॥ दीवा दीवुप्पत्ती ण य उभयं तत्थ दिहमह बुद्धी। जुत्तमिदमुवादाणं न हि दीवो अनदीवस्स ॥११५॥ ण य मातीचेतण्णं अणुवादाणं तयन्भुवगमे य । जदुवादाणं एयं तत्तो परलोगसिद्धि गामितायात्ति ॥११६ ।। समुच्छिमसब्भावा मतदेहेऽणेगसंभवातो य । अन्नत्यनिमित्तत्ते ण पमाणं लोकबाधा य ।। ११७ ॥ किंच पडिसेहगं 31 दसिद्धिः कि पमाणमेयस्स ? अह तु पच्चक्ख । लोगम्मि विज्जमाणत्थगाहगत्तेण तं सिद्धं ॥ ११८ ॥ तस्सेव णिवित्तीए अह गम्मइ एत्थ | वत्थुऽभावोऽपि । सा तं चिय तुच्छा वा हवेज्ज जति तं चिय विरोहो ।।११९॥ अह तु तदंतरमेसा णो तधिसएण तस्स संबंधो ।। सिद्धो कहं ततो णणु तदभावविणिच्छओ एत्थ ? ॥ १२० ॥ अह तुच्छा तीऍ कहं तदवगमो सबहा असत्तातो ? । सिद्धो य है विणाभावो तेण समं तीएं किं भवतो ? ॥ १२१ ॥ तदभावे णावगमो तब्भावे कह ण होति अणुमाणं ? । तब्भावम्मि अ (वे य अ) जुत्तं अणुमाणं अप्पमाणंति ॥ १२२ ॥ अह अणुमाणविरुद्धादिदोससब्भावतोऽपमाणं तं । णो वत्थुबलपवत्ते ते दोसा दंसियमिदं तु ॥ १२३ ।। अह अणुमाणेणं चिय पडिसेहो णो तयं तुह पमाणं । अपमाणम्मि य तम्मी का अत्था णाद (य) वादाणं है ॥ १२४ ॥ अह परसिद्धणं चिय परपडिवत्तीएँ पत्थि दोसोत्ति । परखग्गेणवि दिट्ठो विणिवादो किं न लोगम्मि ? ॥ १२५ ॥ ॥६६॥ विणिवायकरणसत्तीसम्भावे जुज्जई तओ णियमा । इय पडिवत्तिनिमित्तं च होइ कहमप्पमाणं तं? ॥१२६ ॥ जइ पडिवत्तिणिमित्तं सव्वं माणति हंत विसओऽवि । पावइ पमाणमेवं इच्छिज्जइ सोक्यारेणं ।। १२७ ॥ णिच्छयओ पुण एत्थं पडिवत्ती चेव होइ A5 For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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