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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शा उपदेश मालायां ॥ २१४॥ अमग्गचारी य । मोहं किलेसजालं, सो खाइ जहेव गोसालो ।। १३० ॥ कलहणकोहणसीलो, भंडणसीलो विवायमीलो य । जोवोठा साधुत्वं निच्चुज्जलिओ, निरत्थयं संयमं चरइ ॥ १३१ ॥ जह वणदवो वणं दवदवस्स जलिओ खणेण निदहइ । एवं कसायपरिणओ, रागद्वेषी जीवो तवसंजमं दहइ ॥ १३२ ।। परिणामवसण पुणो, अहिओ ऊणयरओ व हुज्ज खओ । तहवि ववहारमित्तेण, भण्णइ इमं जहा धूलं ॥ १३३ ।। फरुसवयणेण दिणतवं, अहिक्खिवतो अ हणइ मासतवं । वरिसतवं सवमाणो, हणइ हर्णतो अ सामण | ॥ १३४ ॥ अह जीवि निकिंतइ, हंतूण य संजमं मलं चिगइ । जीवो पमायबहुलो, परिभमइ अ जेग संसारे ॥ १३५ ॥ अक्कोसणतज्जणताडणा य अवमाणहीलणाओ अ । मुणिणो मुणियपरपभा (हा), दढप्पहारिय बिसहंति :! १३६ ॥ अहमाहओत्ति न य पडिहणंति सत्ताऽपि न य पडिसवंति | मारिज्जंतावि जई, सहंति साहस्समल्लुव्व ॥ १३७॥ दुज्जणमुहकोदंडा, वयणसरा | पुन्बकम्मनिम्माया । साहूण ते न लग्गा, खतीफलयं वहंताणं ॥ १३८ । पत्थरेणाहओ कीवो, पत्थर डक्कुमिच्छइ । मिगारिओ सरं पप्प, सरुप्पत्ति विमग्गइ ॥ १३९ ॥ तह पुब्धि किं न कयं, न बाहए जेण मे समत्थोऽवि । इण्हि किं कस्स व कुप्पिमुत्ति धीरा अणुप्पिच्छा ॥ १४० ॥ अणुराएण जइस्सऽवि, सियायपत्तं पिया धरावेइ । तहवि य खंदकुमारो, न बंधुपासेहिं पडिबद्धो ॥ १४१ ।। गुरु गुरुतरो अ अइगुरु, पियमाइअवच्चपियजणसिणेहो । चिंतिज्जमाणगुविलो, चत्तो अइधम्मतिसिएहि ॥ १४२॥ अमुणियपरमत्थाणं, बंधुजणसिणेहवइयरो होइ । अवगयसंसारसहावनिच्छयाणं समं हिययं ॥१४३॥ माया पिया य भाया, भज्जा ॥ २१४ पुत्ता सुही य नियगा य । इह चेव बहुविहाई, करंति भयवेमणस्साई ।। १४४ ॥ माया नियगमइविगप्पियम्मि अत्थे अपूरमाणम्मिः। पुत्तस्स कुणइ वसणं, चुलणी जह बंभदत्तस्स ॥ १४५ ॥ सवंगावगविगनणाओ जगडणविहेडणाओ अ। कासी य रज्जतिमिओ For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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