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15 बलवंतंपि हु कम्म आहच्च वीरिएणेव । असइ य जियपुचो विह मल्लो मल्लं जहा रंगे ॥ ७८३ ॥ एत्तोच्चिय निद्दिट्ठा तुल्लबला |
सम्यक्त्वसंगटीटा दिब्बपुरिसगारावि । समयन्नहिं अन्नह पावइ दिद्वेहवाहा उ॥७८४॥ होअतकिय चिय देवकयं तंति तस्स पाहना । उवसज्ज-ICI
स्य प्राप्ति
भेदाच. | णभूओ पुण अत्थि तहिं पुरिसगारोऽवि ।। ७८५ ॥ जं पुण अभिसंधाओ होइ तयं पुरिसगारसझंति । तप्पाघनत्तणतो दिव्वं | ॥१०॥
उवसज्जर्ण तत्थ ॥७८६॥ एवं जज्जड पगतं दीसह सम्मादियं च ज तेग | सेसा जातिविरप्पा हवंति ता कि पसंगण ।।। ७८७ ॥ | पगतं वोच्छामि अतो गंठिब्भेदम्मि दंसणं नियमा । सो दुल्लभो परिस्समचित्तविघायाइविग्घेहिं ।। ७८८ ।। सो तत्थ परिस्सम्मति
घोरमहासमरनिग्मतादिव्य । विज्जा व सिद्धिकाले जह बहविग्घा तहा सोऽवि ।।७८९॥ कम्महिती सुदीहा खविता जइ णिग्गुणण | सेसपि । स खवेउ निग्गुणो च्चिय किं थ पुणो दंसणादीहिं ।। ७९० ॥ पाएण पुसेवा परिमउई साहम्मि गुरुतरिया । होइ महाविज्जाए किरिया पायं सविग्धा य ।। ७९१ ॥ तह कम्मठितिक्खवणा परिमउई मोक्खसाहणे गुरुई । इय दंसणादिकिरिया दुलहा पायं सविग्धा य ।। ७९२ ।। अहव जओ च्चिय सुबहु खवितं तो णिग्गुणो ण सेसपि । स खवेइ लभइ य जओ संमत्तसुया| दिगुणलाभं ।। ७९३ ।। करणं अहापवत्तं अपुबमणियट्टिमेव भब्वाणं । इतरेसिं पढम चिय भण्णइ करणं तु परिणामो ॥ ७९४ ।। | जा गंठी ता पढम गठिं समइच्छतो अपुवं तू । अणियट्टीकरण पुण संमत्तपुरक्खडे जीवे ॥ ७९५ ॥ संमनपि य तिविहं खओवस| मियं तहोवसमियं च । खइयं च कारयादि य (व) पन्नत्तं वीयरागेहिं ॥७९६।। मिच्छत्तं जमुदिनं तं खीण अणुदियं च उवसंतं । डा॥१०७॥ | मीसीभावपरिणतं वेदिज्जतं खओवसमं ॥ ७९७ ॥ उपसमियसेढिगयस्स होइ उबसामिय तु सम्मत् । जो वा अकयतिपुंजी अखवियमिच्छो लभइ सम्मं ॥ ७९८ ।। खीणम्मि उदिनम्मि उ अणुदिज्जते य सेसमिच्छत्ते । अंतोमुहुत्तमेवं उवसमसम्म लभइ
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