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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धमे I दशशाखयां ॥१२७५ ।। अह तु अकिंचिण्णुच्चिय एवं पुरिसादओ कहं तम्मि? | परिगप्पियपडिसेहे अब्भुवगमवाहणं णियमा ।। १२७६ ॥ठासवेज्ञसिद्धा | अह उ अभावोत्ति तओ तस्सव पगासगो अयं सहो । एयपि माणविरहा असंगतं चेव णातब्बं ॥ १२७७ ॥ पुरिसत्तंपि असिद्धलानित्यागम संग्रहणी. वेदाभावातो तम्मि भगवंते । आगारमित्ततुल्लत्तणेवि मायाणराणं व ॥१२७८ ॥ ण य णाणपगरिसेणं पुरिसादीणंपि कोइविश विरोहो । वयणं तु णाणजुत्तस्स चेव उववण्णतरगं तु ॥ १२७९ ॥ सिय अह जो जो पुरिसो सो सो णो णाणपगरिससमेतो । ॥१३७॥ दिट्ठोत्ति ताण जुत्तं अदिट्ठपरिगप्पणं काउं ॥ १२८० ॥ अस्सावणत्तजुत्तं सत्तं सब्वेसु चेव भावेसु । दिवपि सद्दरूवे अविरोहा अण्णहा सिद्धं ॥१२८१॥ एवं पुरिसत्तंपि हु जइवि ण विण्णाणपगरिससमेतं । दिद्वं तहऽवविरोहा तेण समेतंपि संभवइ ॥१२८२॥ वयणपि ण रागादीणमेव कज्जंति तेहिं रहितावि । पगतं पयंपइ जतो कोई मज्झत्थभावेण ॥ १२८३ ॥ अह तु विवक्खाएँ विणा | ण जंपई कोइ सा य इच्छत्ति । रागो य तती तम्हा वयणं रागादिपुवं तु ।। १२८४ ।। सुविणादिसु तीऍ विणा जंपति कोई तहा विचित्तो य । अनम्मि जंपियव्वे. दीसइ अन्नं च जपतो ।। १२८५ ॥ तत्थवि य अत्थि सुहुमा अवंतराले य कज्जगम्मत्ति । दिदुपरिच्चाएणं अदिद्वपरिकप्पणा एसा ॥ १२८६ ॥ण य परिसुद्धा एसा रागोऽवि वदंति समयसारण्णू । विहिताणुट्ठाणपरस्स जह तु | सज्झायझाणेसु ॥ १२८७ ॥ मणपुब्बिगा विवक्खा ण य केवलिणो मणस्सऽभावातो । अवि णाणपुबिग च्चिय चेट्ठा सा होइ ठाणायब्वा ॥ १२८८।। एत्तो च्चिय सा सततं ण पवत्तति तह य संगतत्थावि । पत्तम्मि अवझफला परिमियरूवा य सा होतिम दि॥ १२८९ ।। रागादिजोग्गताजण्णमह तु वयणं ण संगतमिदंपि । तज्जोग्गता ण अण्णं जणेति पुवावरविरोडो ।। १२९० ।। जंपति ॥१३७॥ |य बीयरागो य भवोवग्गाहिकम्मुणो उदया। तेणेव पगारेणं वेदिज्जति जं तयं कम्मं ॥ १२९१ ।। संदिदा य विवक्खा वावित्ती For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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