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सर्वोपशमना
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श्रीचन्द्र- गुणसंकमेण तेसिं तु । नासेइ तओ पच्छा अंतमुहुत्ता सभावत्थो ।। ७६७ ॥ दसणखवगस्सऽरिहो जिणकालीओ पुमट्ठवासुवरि । पिकृते ।
| अणणासकमा करणाई करिअ गुणसकर्म तह य ।। ७६८ ।। अप्पुब्बकरणसमगं गुणउव्वलणं करेइ दोण्हपि । तकरणाई जंतं ठितिपञ्चसंग्रहालसंत संखभागोऽते ॥ ७६९ ।। एवं ठितिबंधोऽवि हुपविसह अणियट्टिकरणसमयाम्म । अपुच्वं गुणसेडिं ठितिरसकंडाणि बन्धं च ४ कमप्रकृता ।। ७७० ॥ देसुवसमणनिकायण निहत्तिरहियं च होइ दिहितिगं। कमसो असण्णिचरिंदियाइ तुलं च ठिइसंतं ॥ ७७१ ।। ।।३२९॥
काठितिखंडसहस्साई एकेके अंतरंमि गच्छंति । पलिओवमसंखसे दंसणसंते तओ जाए ॥ ७७२ ॥ संखज्जा संखेज्जा भागा खंडेइ
सहससो तेवि । तो मिच्छस्स असंखा संखेज्जा सम्ममीसाणं ।। ७७३ ॥ तत्तो बहुखंडते खंडइ उदयावलीरहिअमिच्छं। तत्तो असंखभागा सम्मामीसाण खंडइ ।। ७७४ ।। बहखंडते मीसं उदयावलि बाहिर खिवइ सम्मे । अडवाससंतकम्मो दंसणमोहस्स
सो खवगा ।। ७७५ ।। अंतमुहुत्तियखंडं तत्तो उकिरइ उदयसमयाओ। निक्खिवइ असंखगुणं जा गुणसेढी परे हीणं ॥ ७७६ ॥ काउकिरह असंखगुणं जाव दुचरिमंति अंतिमे खडे । संखेज्जं सो खंडइ गुणसढीए तहा देह ।। ७७७॥ कयकरणो तकाले कालपित Pा.करेइ चउसुवि गईसु । वेइअसेसो सेढी अण्णयरं वा समारुहइ ।। ७७८ ॥ तइयचउत्थे तंमि व भवम्मि सिझंति दंसणे खीणे । जं
| देवनिरयसंखाउ चरमदेहेसु ते हुति ।। ७७९ ॥ अहबा दंसणमोहं पढमं उवसामइत्तु सामण्णे । ठिच्चा अणुदइयाणं पढमठितीNआवली नियमा ।। ७८० ॥ पढमुवसमुब सेसं अंतमुहुत्ताओ तस्स विज्झाओ । संकसविसोहीओ पमत्त इयरत्तणं बहुसो ॥७८१।।।।
पुण तिण्णि उ करणाई करेइ तइयम्मि एत्थ पुण भेओ। अंतो कोडाकोडी बंधं संतं च सत्तण्हें ॥ ७८२ ।। ठितिखंडं उकस्सपि तस्स पल्लस्स संखतमभागं । ठितिखंड बहुसहस्से से केकं जं भणिस्सामो ॥७८३॥ करणस्स संखभागे सेसे (य) असण्णिमाइयाण
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