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पश्चाशक तओ मुणेयव्यो । भावत्थजुओ एत्थ उ सब्बत्थवि कारणं एयं ॥८३५ ॥ पुरिमाण दुन्धिसोझो चरिमाणं दुरणुपालओं कप्पो । गला
लोकपो१८ भिक्षुमूलम् मज्झिमगाण जिणाणं सुविसोझो सुहणुपालो य ।। ८३६ ॥ उज्जुजड़ा पुरिमा खलु णडादिणायाउ होति विष्णेया। वकजडा उण ||
प्रतिमा
पंचाशक ॥ ५२॥
चरिमा उजुपण्णा मज्झिमा भणिया ।। ८३७ ।। कालसहावाउ च्चिय एए एवंविहा उ पाएण । होति अओ उ जिणेहिं एएसि इमा||
कया मेरा ॥ ८३८ ॥ एवंविहाणवि इहं चरणं दिटुं तिलोगणाहेहिं । जोगाणं थिरो भावो जम्हा एएसि सुद्धो उ ।। ८३९ ।। अथिरो Pउ होइ इयरो सहकारिवसेण ण उण तं हणइ । जलणा जायइ उण्हं वज्ज ण उ चयइ तत्तंपि ॥ ८४० ॥ इय चरणम्मि ठियाणं होई हा अणाभोगभावओ खलणा । ण उ तिव्वसंकिलेसा अवेति चारित्तभावोवि ॥ ८४१॥ चरिमाणवि तह णेयं संजलणकसायसंगमं
चेव । माइट्टाणं पायं असंइंपि हु कालदोसेणं ॥ ८४२ ॥ इहरा उ ण समणतं असुद्धभावाउ हंदि विष्णेयं । लिंगंमिवि भावेणं
सुत्तविरोहा जओ भणियं ।। ८४३ ।। सब्बेवि य अइयारा संजलणाणं तु उदयओ होति । मूलच्छेज्जं पुण होइ बारसहं कसायार्ण ६॥ ८४४ ॥ एवं च संकिलिट्ठा माइहाणंमि णिचतल्लिच्छा । आजीवियभयमत्था मूढा णो साहुणो णेया ।। ८४५ ॥ संविग्गा गुरुवि-18 है णया णाणी दंतिदिया जियकसाया । भवविरहे उज्जुत्ता जहारिहं साहुणो होति ।। ८४६ ॥ ठियाठियकप्पविही ।। १७॥
॥अथाष्टादशं भिक्षुप्रतिमापंचाशकं ॥१८॥ णमिऊण वद्धमाणं भिक्खूपडिमाण लेसओ किंपि । वोच्छं सुत्ताएसा भव्वहियहाएँ पयडत्थं ।। ८४७ ।। बारस भिक्खूपडिमा |
है ॥५२॥ ओहेणं जिणवरेहिं पण्णत्ता । मुहभावजुया काया मासाईया जओ भणियं ॥ ८४८ ॥ मासाई सत्ता पढमाबिइतइयसत्तराइदिणा। "
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