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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चाशक मूलम् - ॥ ३३॥ सग्गाहा किरियरया पवयणखिसावहा खुद्दा ॥ ५३१ ॥ पायं अहिण्णगंठीतमा उ तह दुक्करपि कुवंता। बज्झा व ण ते साहू धंखा-13 हरणेण विण्णेया ॥ ५३२ ॥ तेसिं बहुमाणेणं उम्मग्गणुमोयणा अणिटुफला । तम्हा तित्थगराणाडिएसु जुत्तोऽत्य बहुमाणो ॥५३३॥ ते पुण समिया गुत्ता पियदढधम्मा जिइंदियकसाया। गंभीरा धीमंता पण्णवणिज्जा महासत्ता ।। ५३४ ॥ उस्सग्गववायाणं विया-17 पश्चाशकम्. णगा सेवगा जहासत्तिं । भावविसुद्धिसमेता आणारुतिणो य सम्मेति ॥५३५॥ सव्वत्थ अपडिबदा मेत्तादिगुणण्णिया य णियमेण । MI सत्ताइसु होति दढं इय आगयमत्त (आययमग्ग) तल्लिच्छा ।। ५३६ ॥ एवंविहा उ या सव्वणयमतेण समयणीतीए । भावण भाविएहिं सइ चरणगुणट्ठिया साहू ॥५३७॥ णाणम्मि दंसणाम्म य सति णियमा चरणमेत्थ समयाम्म | परिसुद्धं विण्णेयं णयमयभया जा भणियं ॥ ५३८ ॥ णिच्छयणयस्स चरणायविधाए णाणदंसणवहां वि । ववहारस्स उ चरणे हयम्मि भयणा उ सेसाणंद |॥ ५३९ ।। जो जहवायं ण कुणति मिच्छदिछी तओ हु को अण्णो? 1 बड़ेइ य मिच्छत्तं परस्स संकं जणेमाणो ।। ५४०॥ एवं च ४ा अहिनिवसा चरणविधाए ण णाणमादीया । नप्पडिसिद्धासवणमोहासद्दहणभावेहिं ।। ५४१ ।। अणभिनिवेसाओ पुण विवज्जया होति । तविधाओऽवि । तकज्जुवलंभाओ पच्छातावाइभावेण ॥ ५४२ ॥ तम्हा जहोइयगुणो आलयसुद्धाइलिंगपरिसुद्धो । पंकयणातादिजुओ विण्णेओ भावसाहुत्ति ॥ ५४३ ॥ एसो पुण संविग्गो संवेग सेसयाण जणयंतो। कुग्गहविरहेण लहुं पावइ मोक्खं सयासोक्खं ४॥ ५४४ ॥ साहुधम्मविही संमत्तो ॥ ११ ॥ अथ द्वादशपञ्चाशकम् ॥ १२॥ ल॥३३॥ नमिऊण महावीरं सामायारी जतीण वोच्छामि । संखेवो महत्थं दसविहमिच्छादिभेदेण ॥ ५४५ ॥ इच्छामिच्छातहकारो For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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