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श्रीचन्द्र- र्षिकृते । पश्चसंग्रहे कमप्रकृती
॥३१०॥
अणुभागठाणाई। ४५० ॥ सव्वत्थोवा ठाणा अणंतगुणणाए जे उ गच्छति । तत्तो असंखगुणिया अंतरवुड्डीए जह हेट्ठा ॥४५॥ अनुभागः होंति परंपरवुड्डीए थोवगाणंतभागवुड्डा जे । अस्संखसंखगुणिआ एक दो दो असंखगुणा ॥ ४५२ ।। एगट्ठाणपमाणं अंतर ठाणा निरन्तरा ठाणा । कालो बुड्डी जवमझ फासणा अप्पबहु दारा ॥ ४५३ ॥ एकेकंमि असंखा तसेयराणतया सपाउग्गे । एगाइ | जाव आवलिअसंखभागो तसा ठाणे ।। ४५४ ॥ तसजुत्तठाणविवरेसु सुण्णया होति एकमाईआ । जाव असंखा लोगा निरन्तरा ४ | थावरा ठाणा ॥४५५॥ दो आइ जाव आवलि असंखभागो निरन्तरतसेहिं । नाणाजिएहिं ठाणं असुण्णय आवलिअसंखं ॥४५६॥14
जवमज्झम्मि य बहवो विसेसहीणाओ उभयओ कमसो । गंतुमसंखा लोगा अद्भुद्धा उभयओ जीवा ॥ ४५७ ॥ आवाल असंखभागं | तसेसु हाणीण होइ परिमाणं । हाणिदुगन्तरठाणा थावरहाणी असंखगुणा ॥ ४५८ ।। जवमज्झे ठाणाई असंखभागो उ सेसठा|णाणं । हेट्ठमि होंति थोवा उवरिमि असंखगुणियाणि ॥ ४५९ ॥ दुगचउरदृतिसमइग ससा य असंखगुणणया कमसो। कालेऽईए
पुट्ठा जिएण ठाणा भमतणं ।। ४६० ॥ तत्तो विसेसअहियं जवमज्झा उवरिमाई ठाणाई । तत्तो कंडगहेट्ठा तत्तोवि हु सव्वठाणाई | | ।। ४६१ ।। फासणकालप्पबहू जह तह जीवाण भणसु ठाणेसु । अणुभागबन्धठाणा अज्झवसाया व एगट्ठा ॥ ४६२ ॥ ठितिठाणे ठिइठाणे कसायउदया असंखलोगसमा । एक्केक्ककसायुदए एवं अणुभागठाणाई ।। ४६३ ॥ थोवाणुभागठाणा जहण्णठितिपढमबंधहेउम्मि । तत्तो विसेसअहिया जाचरमाए चरमहेऊ ॥ ४६४॥ गंतुमसंखा लोगा पढमाहिंतो भवंति दुगुणाणि । आवलिअसंखभागो दुगुणठाणाण संवग्गो ॥ ४६५ ॥ असुभपगईणमेवं इयराणुक्कोसगम्मि ठिइबन्धे । सबुक्कोसगहेऊ उ होइ एवांचिय असेल.३१०॥ ॥४६६ ॥ थोवाणुभागठाणा जहण्णठितिबंध असुभपगईणं । समयबुड्डीए किंचि हियाई सुहियाण विवरीयं ॥ ४६७ ।। पलिया
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