Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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बारहवें श्रुताङ्ग दृष्टिवादका परिचय
श्वेताम्बर मान्यता
दिगम्बर मान्यता दिट्टिवाद' के ५ भेद
दिट्टिवाद' के ५भेद १ परिकम्म
१ परिकम्म' २ सुत्त
२ सुत्त ३ पुवगय
३ पढमाणिओग ४ अणुओग
४ पुव्वगय ५ चूलिया
५ चूलिया दोनों संप्रदायोंमें दृष्टिवादके इन पांच भेदोंके नामोंमें कोई भेद नहीं है, केवल अणियोगकी जगह दिगम्बर नाम पढमाणियोग पाया जाता है। इसका रहस्य आगे बताये हुए प्रभेदोंसे जाना जायगा। दूसरा कुछ अन्तर पुव्वगय और अणियोगके क्रममें है। श्वेताम्बर पुव्वगयको पहले और अणियोगको उसके पश्चात् गिनाते हैं; जब कि दिगम्बर पढमाणियोगको पहले और पुव्यगयको उसके अनन्तर रखते हैं। यह भेद या तो आकस्मिक हो, या दोनों सम्प्रदायोंके प्राचीन पटनक्रमके भेदका द्योतक हो । दिगम्बरीय क्रमकी सार्थकता आगे पूों के विवेचनमें दिखायी जावेगी। परिकर्मके ७ भेद
परिकर्मके ५ भेद १ सिद्धसेणिआ
१ चंदपण्णत्ती २ मणुस्ससेणिआ
२ सरपग्णत्ती ३ पुट्ठसेणिआ
३ जंबूदीवपप्णत्ती ४ ओगाढसेणिआ
४ दीवसायरपण्णत्ती ५ उपसंपजणसेणिआ
५ वियाहपण्णत्ती ६ विप्पजहणसेणिआ ७ चुआचुअसेणिआ
१ अथ कोऽयं दृष्टिवादः ? दृष्टयो दर्शनानि, वदनं
वादः। दृष्टीना बादो दृष्टिवादः। अथवा पतनं पातः, दृष्टीना पातो यत्र स दृष्टिपातः ।
(नंदीसूत्र टीका) २ तत्र परिकर्म नाम योग्यतापादनम् । तद्धेतुः शास्त्र-
मपि परिकर्म। xxx तथा चोक्तं चूर्णी-परिकम्मे त्ति योग्यताकरणं । जह गणियस्स सोलस परिकम्मा तग्गहिय-मुत्तत्थो सेस गणियस्स जोग्गो भवइ, एवं गहियपरिकम्मसुत्तत्थो सेस-सुत्ताइ-दिटिवायस्स जोग्गो भवह त्ति ।
(नंदीसूत्र टीका)
१पृष्टीन त्रिषष्टयुत्तरत्रिशतसंख्यानी मिध्यादर्शनाना वादोऽनुवादः, तन्निराकरणं च यस्मिन्क्रियते तद दृष्टिवादं नाम ।
(गोम्मटसार टीका) २ परितः सर्वतः कर्माणि गणितकरणसूत्राणि यस्मिन् तत् परिकर्म ।
(गोम्मटसार टीका)
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