Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 509
________________ ८१६ ] छक्खंडागमे जीवहाणं [१, १. काउ-सुक्कलेस्सा, भावेण छ लेस्साओ; भवसिद्धिया, वेदगसम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा । __वेदगसम्माइटि-संजदासंजदाणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ पज्जत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, दो गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, णव जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिणि णाण, संजमासंजमो, तिणि दंसण, दव्वेण छ लेस्साओ, भावेण तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साओ; भवसिद्धिया, वेदगसम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा । वेदगसम्माइटि-पमत्तसंजदाणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, दो जीवसमासा छ पज्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, मणुसगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, एगारह जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, चत्तारि णाण, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे छहों लेश्याएं: भव्यसिद्धिक, वेदकसम्यक्त्व, संक्षिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं। __ वेदकसम्यग्दृष्टि संयतासंयत जीवोंके आलाप कहने पर-एक देशविरत गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवलमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, तिर्यंचगति और मनुष्य गति ये दो गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग और औदारिककाययोग ये नौ योग; तीनों वेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान, संयमासंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे तेज, पद्म और शुक्ल लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, वेदकसम्यक्त्व, संक्षिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं। वेदकसम्यग्दृष्टि प्रमत्तसंयत जीवोंके आलाप कहने पर-एक प्रमत्तसंयत गुणस्थान, संक्षी-पर्याप्त और संक्षी-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां दशों प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, सकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, औदारिककाययोग, आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोग ये ग्यारह योग; नं. ४८९ वेदकसम्यग्दृष्टि संयतासंयत जीवोंके आलाप. । गु. । जी. । प. प्रा. सं. ग. ई. का. यो. वे. क.सा. संय. द. ले. । म. स. संझि.! आ. | उ. । ११ ६ १०४/२/११ ९ ३ ४ ३ १ ३ द्र. ६ ११११२ देश. सं.प. मति. देश. के.द. मा. ३ म. क्षायो. सं. आहा.साका. विना. शुभ. अना. औ. १ अव. ति. पं. त्र. म.४ खुत. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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