Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 543
________________ छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १,१. आहारि-सजोगिकेवलीणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणद्वाणं, दो जीवसमासा, छ पज्जतीओ छ अपज्जतीओ, चत्तारि पाण दो पाण, खीणसण्णाओ, मणुसगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ छ जोग, कम्मइयकायजोगो णत्थि अवगदवेदो, खीणकसाओ, केवलणाण, जहाक्खादविहार सुद्धिसंजमो, केवलदंसण, दव्वेण छ लेस्साओ, भावेण सुक्कलेस्सा; भवसिद्धिया, खइयसम्मत्तं, णेव सण्णिणो णेव असण्णिणो, आहारिणो, सागारअणागारेहिं जुगवदुवजुत्ता वा " । ५३८ ८५० ] एवं पज्जत्तापञ्जालावा वत्तव्वा । एवं सव्वत्थ वत्तव्यं । अणाहारीणं भण्णमाणे अत्थि पंच गुणट्ठाणाणि अदीदगुणहाणं पि अस्थि, अट्ठ आहारक सयोगिकेवली जिनके आलाप कहने पर - एक सयोगिकेवली गुणस्थान, पर्याप्त और अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छद्दों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां; वचनबल, कायबल, आयु और श्वासोच्छ्वास ये चार प्राण, तथा कायबल और आयु ये दो प्राणः क्षीणसंज्ञा, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, सत्य और अनुभय ये दो मनोयोग, ये ही दो वचनयोग, औदारिककाययोग और औदारिकमिश्रकाययोग ये छह योग होते हैं; किन्तु कार्मण काय योग नहीं होता है । अपगतवेद, क्षीणकषाय, केवलज्ञान, यथाख्यातविहारशुद्धिसंयम, केवलदर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे शुक्ललेश्याः भव्यसिद्धिक, क्षायिकसम्यक्त्व, संज्ञिक और असंशिक इन दोनों विकल्पोंसे मुक्त, आहारक, साकार और अनाकार इन दोनों उपयोगों से युगपत् उपयुक्त होते हैं। इसीप्रकार से सयोगिकेवलीके पर्याप्त और अपर्याप्त आलाप कहना चाहिए । इसीप्रकार सर्वत्र कहना चाहिए । अनाहारक जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर - मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, अविरतसम्यग्दृष्टि, सयोगिकेवली और अयोगिकेवली ये पांच गुणस्थान तथा अतीतगुणस्थान भी है, सात अपर्याप्त और अयोगिकेवली गुणस्थानसंबन्धी एक पर्याप्त इसप्रकार आठ जीव नं. ५३८ गु. जी. प. प्रा. सं. ग. इं. का. यो. वे. क. ज्ञा. संय. १ २ ६५. ४ सयो. प. ६अ. २ अ. Jain Education International क्षीणसं. 04. आहारक सयोगिकेवली जिनके आलाप. १ १ म. पं. १ त्र. म. २ व. २ आ. २ अपग. अकषा. ० द. ले. भ. १. १ १ १ द्र. ६१ केव. यथा. के. द. मा.भ. क्षा. शुक्ल. For Private & Personal Use Only स. साझ. आ. १ २ अनु. आहा. साका अनायु. उ. য• उ. www.jainelibrary.org

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