Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 534
________________ १, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे आहार-आलाववण्णणं [८४१ पंचिदियजादी, तसकाओ, बारह जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि अण्णाण, असंजमो, दो दंसण, दव्व-भावेहिं छ लेस्साओ, भवसिद्धिया, सासणसम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा। तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ पजत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गईओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, दस जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि अण्णाण, असंजमो, दो दंसण, दव्व-भावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया, सासणसम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा"। तेसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, छ अपजत्तीओ, सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिण्णि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, दो मनोयोग, चारों वचनयोग, औदारिककाययोगद्विक और वैफ्रियिककाययोगद्विक ये बारह योग; तीनों वेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, सासादनसम्यक्त्व, संज्ञिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं। उन्हीं आहारक सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने परएक सासादन गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण; चारों संज्ञाएं चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, औदारिककाययोग और वैक्रियिककाययोग ये दश योग; तीनों वेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, सासादनसम्यक्त्व, संशिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं। उन्ही आहारक सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने परएक सासादन गुणस्थान, एक संझी-अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, सात प्राण, चारों संशाएं, नरकगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, प्रसकाय, औदारिकमिश्र और नं. ५२४ आहारक सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके पर्याप्त आलाप. गु. जी. प.प्रा. सं. ग.ई. का. यो. । वे. क. शा. | संय. द. | ले. । म. स. । संशि.| आ. उ. । | १ ६१०४|४|१११०म.४३ ४ ३ १ २.६१ १ ११२ सा. सं.प. अज्ञा. असं. चक्षु. मा.६ म. सासा. सं. आहा. साका. " और अच.| | बना. त्रस. अच. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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