Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 537
________________ ८१४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, १. दस जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि णाण, असंजमो, तिण्णि दसण, दव्वभावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया, तिण्णि सम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा । तेसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ अपजत्तीओ, सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गईओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, दो जोग, इत्थिवेदेण विणा दो वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि णाण, असंजमो, तिण्णि दंसण, दव्वेण काउलेस्सा, भावेण छ लेस्साओ; भवसिद्धिया, तिण्णि सम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा । आहारि-संजदासंजदाणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ पजत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, दो गईओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, णव चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, औदारिककाययोग और वैक्रियिककाययोग ये दश योग, तीनों वेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान; असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, औपशमिकसम्यक्त्व आदि तीन सम्यक्त्व, संज्ञिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं। उन्हीं आहारक असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने परएक अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, एक संज्ञी-अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, सात प्राण, चारों संशाएं, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, औदारिकमिश्र और वैक्रियिकमिश्रकाययोग ये दो योग, स्त्रीवेदके विना शेष दो वेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे कापोत लेश्या, भावसे छहों लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, औपशमिकसम्यक्त्व आदि तीन सम्यक्त्व, संज्ञिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं। आहारक संयतासंयत जीवोंके आलाप कहने पर एक देशसंयत गुणस्थान, एक संबी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, तिर्यंचगति और मनुष्य नं. ५२९ आहारक असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके अपर्याप्त आलाप. | गु. । जी. प. प्रा. सं. ग.ई. का. यो. | वे.क. झा. संय. द. ले. भ. स. संनि. आ. : उ. | ११६७४४११२ २ ४ ३ १ ३ द्र.११३११२ अंवि. सं.अ. अ. पं. त्र. औ.मि. प. मति. असं. के. द. का. भ. औप. सं. आहा. साका. विना. भा.६ अव. क्षायो. वै.मि.न. श्रुत. अना. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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