Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

Previous | Next

Page 519
________________ ८२६] छक्खंडागमे जीवहाणं [१, १. अत्थि, चत्तारि गईओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, पण्णारह जोग, तिणि वेद अवगदवेदो वि अत्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अस्थि, सत्त णाण, सत्त संजम, तिण्णि दंसण, दव्व-भावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा । तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि बारह गुणट्ठाणाणि, एओ जीवसमासो, छ पज्जत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अत्थि, चत्तारि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, एगारह जोग, तिण्णि वेद अवगदवेदो वि अत्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अत्थि, सत्त णाण, सत्त संजम, तिणि दंसण, दव्व-भावेहिं छ प्रसकाय, पन्द्रहों योग, तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है, चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है, केवलज्ञानके विना शेष सात शान, सातों संयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक अभव्यसिद्धिक, छहों सम्यक्त्व, संक्षिक, आहारक, अनाहारका साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं। ___ उन्हीं संशी जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-आदिके बारह गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंज्ञास्थान भी है, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, सकाय, पर्याप्तकालसंबन्धी ग्यारह योग, तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है, चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है, केवलज्ञानके विना शेष सात ज्ञान, सातों संयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, नं. ५०१ संझी जीवोंके सामान्य आलाप. | गु. जी. प. प्रा. सं. ग. इ. का. यो. वे.क. सा. संय. द. | ले. म. स. संनि. आ. | उ. । १२ २ ६५. १० ४ ४|११ १५ ३/४७ ७ ३ द्र.६/२६ १ २ २ मि. सं.प. अ. ७ . केव. के.द. भा.६ म. सं. आहा. साका. से. सं.अ. विना. विना. अना. अना. क्षीणसं. अकषा. नं. ५०२ संक्षी जीवोंके पर्याप्त आलाप. गु. | जी. प.प्रा.सं.)ग-1 ई. का. यो. वे क.सा. [ संय. द. ले. भ. स. | सनि. आ. | उ. । १२।१।६/१०४|४|११११म.४३७ ७ ३ द. ६: २६११ मि. सं.प. ... पं. त्र. व.४ । के.द.भा.भ. सं. आहा. साका विना| अना. अपग. केव. क्षीणसं. अकषा. विना. आ.१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568