Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 527
________________ ८३४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, १. असण्णीणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणट्ठाणं, बारह जीवसमासा, पंच पज्जत्तीओ पंच अपज्जत्तीओ चत्तारि पज्जत्तीओ चत्तारि अपज्जत्तीओ, णव पाण सत्त पाण अट्ठ पाण छ पाण सत्त पाण पंच पाण छ पाण चत्तारि पाण चत्तारि पाण तिणि पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिरिक्खगदी, पंच जादीओ, छ काय, चत्तारि जोग अच्चमोमवचिजोगो ओरालिय-ओरालियमिस्सकायजोगा कम्मइयकायजोगो चेदि, तिष्णि वेद, चत्तारि कसाय, विभंगणाणेण विणा दो अण्णाण, असंजमो, दो सण, दव्वेण छ लेस्सा, भावण किण्ह-णील-काउलेस्साओ; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, असण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा। तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणट्ठाणं, छ जीवसमासा, पंच पज्जत्तीओ चत्तारि पज्जत्तीओ, णव पाण अट्ठ पाण सत्त पाण छ पाण चत्तारि पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिरिक्खगदी, पंच जादी, छ काय, दो जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि असंशी जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, संक्षी-पर्याप्त और संज्ञी-अपर्याप्तके विना शेष बारह जीवसमास, पांच पर्याप्तियां, पांच अपर्याप्तियां; चार पर्याप्तियां, चार अपर्याप्तियां; नौ प्राण, सात प्राण; आठ प्राण, छह प्राण; सात प्राण, पांच प्राण; छह प्राण, चार प्राण; चार प्राण, तीन प्राण; चारों संज्ञाएं, तिथंचगति, पांचों जातियां, छहों काय, असत्यमृषावचनयोग, औदारिककाययोग, औदारिकमिथकाययोग और कार्मण. काययोग ये चार योगः तीनों वेद, चारों कषाय, विभंगावधिज्ञानके विना शेष दो अज्ञान, अंसंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; मिथ्यात्व, असंज्ञिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं। उन्हीं असंशी जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, सात पर्याप्त जीवसपासों में से एक संशी-पर्याप्तके विना शेष छह पर्याप्त जीवसमास, पांच पर्याप्तियां, चार पर्याप्तियां नौ प्राण, आठ प्राण, सात प्रण, छह प्राण, चार प्राण; चारों संशाएं, तिर्यंचगति, पांवों जातियां, छहों काय, अनुभयवचनयोग, और औदारिककाययोग ये नं.५१४ असंझी जीवोंके सामान्य आलाप. ग. इं.का. यो. वे. क. ज्ञा। संय द. | ले. 1. जी. प. प्रा. | म. स. संज्ञि. आ. उ. | व.अनु.१० सं. मि. सं.प.५अ.८,६ सं अ. ४प. ७,५ विना. ४ अ.६,४ कुम. असं. चक्षु. भा. भ.. मि. कुश्रु. अच. अशु. आहा. साका. अना. अना. कार्म. १ ३ mar Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org

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