Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 529
________________ छक्खंडागमे जीवद्वाणं व सण-व- असण्णीणं सजोगि - अजोगि सिद्धाणं ओघ - भंगो । एवं सण्णिमग्गणा समत्ता । आहारावादेण आहाणं भण्णमाणे अत्थि तेरह गुणडाणाणि, चोदस जीवसमासा, छ पञ्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ पंच पज्जत्तीओ पंच अपज्जत्तीओ चत्तारि पज्जचीओ चत्तारि अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण ( णव पाण सत्त पाण अट्ठ पाण छ पाण सत्त पाण' ) पंच पाण छ पाण चत्तारि पाण चत्तारि पाण तिष्णि पाण चत्तारि पाण दो पाण, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अस्थि, चत्तारि गईओ, पंच जादीओ, छ काय, चोहस जोग कम्मइयकायजोगो णत्थि, तिणि वेद अवगदवेदो वि अस्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अस्थि, अट्ठ णाण, सत्त संजम, चत्तारि दंसण, दव्वभावेहिं छ लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सण्णिणो असविणणो व सणणो णेव असणणो वि अस्थि, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा सागार - अणागारेहिं जुगवदुवजुत्ता वा ५१७ ८३६ ] से. सयो. 1 संज्ञिक और असंज्ञिक इन दोनों विकल्पोंसे रहित सयोगिकेवली, अयोगिकेवली और सिद्ध भगवान् के आलाप ओघ आलापोंके समान होते हैं । इसप्रकार संज्ञी मार्गणा समाप्त हुई । आहार मार्गणाके अनुवादसे आहारक जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर - आदिके तेरह गुणस्थान, चौदद्दों जीवसमास, छद्दों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां पांच पर्याप्तियां, पांच अपर्याप्तियां; चार पर्याप्तियां, चार अपर्याप्तियां; दशों प्राण, सात प्राणः नौ प्राण, सात प्राण आठ प्राण, छह प्राण; सात प्राण, पांच प्राणः छह प्राण, चार प्राण; चार प्राण, तीन प्राणः सयोगिकेवली के चार प्राण और दो प्राण; चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंज्ञा स्थान भी है, चारों गतियां, पांचों जातियां, छद्दों काय, चौदह योग होते हैं; क्योंकि, यहांपर कार्मणकाययोग नहीं होता है। तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है, चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है, आठ ज्ञान, सातों संयम, चारों दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; छद्दों सम्यक्त्व, संज्ञिक, असंज्ञिक तथा संज्ञिक और असंज्ञिक इन दोनों विकल्पोंसे रहित भी स्थान है, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी तथा साकार और अनाकार इन दोनों उपयोगों से युगपत् उपयुक्त भी होते हैं । १ प्रतिषु कोष्ठकान्तर्गतपाठो नास्ति । नं. ५१७ गु. जी. प. प्रा. १३ १४६५. १०,७ मि. ६अ. ९,७ ५५. ८, ६ ५अ. ७,५ ४५. ६, ४ ४ अ. ४, ३४, २ Jain Education International आहारक जीवोंके सामान्य आलाप. सं. ग. इं. का. यो. वे. क. ज्ञा. संय. द. ४ ८ ७ ४ ४ ४ ५ ६ १४ काम. विना. [ १, १० For Private & Personal Use Only ले. भ. स. सोझ. आ. उ. द्र.६ २ ६ भा.६ भ. अ. २ १ २ सं. आहा. साका. असं. अना. अनु. तथा पु.उ. www.jainelibrary.org

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