Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १.] संत-परूवणाणुयोगदारे सण्णि-आलाववण्णणं
[८२. लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुषा होति अणागारुवजुत्ता वा ।
तेसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि चत्तारि गुणट्ठाणाणि, एगो जीवसमासो, छ अपज्जत्तीओ, सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, चत्तारि जोग, तिग्णि वेद, चत्तारि कसाय, पंच णाण, तिणि संजम, तिण्णि दसण, दव्येण काउ-सुक्कलेस्सा, भावेश छ लेस्साओ; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, पंच सम्मत, सणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुषजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा ।
सण्णि-मिच्छाइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, दो जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, तेरह जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिणि अण्णाण,
अभव्यसिद्धिक, छहों सम्यक्त्व, संशिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
उन्हीं संज्ञी जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, अविरतसम्यग्दृष्टि और प्रमत्तस्यत ये चार गुणस्थान, एक संझी-अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, सात प्राण. चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजानि, प्रसकाय, अपर्याप्तकाल संबन्धी चार योग, तीनों वेद, चारों कषाय, कुमति, कुश्रुत, और आदिके तीन ज्ञान ये पांच ज्ञान; असंयम, सामायिक और छेदोपस्थापना ये तीन संयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे छहों लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिखिका सम्यग्मिथ्यात्वके विना शेष पांच सम्यक्त्व, संशिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, संक्षी पर्याप्त और संज्ञी-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां: दशों प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, आहारककाययोग
नं.५०३
संक्षी जीवोंके अपर्याप्त आलाप. | गु. जी. प. प्रा. सं ग । ई का। यो. वे. | क. झा. | संय. द. ले. म. स. संजि. आ. ) .. ४ १६.४४२४ ३/४५ कुम. ३३ द्र.२२
कुशु. असं के.द. का. म. सम्य.
मति सामा. विना. शु. अविना. अना. अना.
आ.मि. |श्रत छेदो. प्रमः।
कार्म.
अव.
आहा. साका.
सासा
अवि.
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