Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 511
________________ छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, १. उaeमसम्माट्ठी भण्णमाणे अत्थि अट्ठ गुणड्डाणाणि, दो जीवसमासा, छ पजत्तीओ छ अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ उवसंत परिग्गहसण्णा वि अस्थि, चत्तारि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, ओरालियमिस्स आहार - आहारमिस्सेहि विणा बारह जोग, तिणि वेद अवगदवेदो वि अस्थि, चत्तारि कसाय उवसंतकसाओ व अस्थि, चत्तारि णाण, परिहारसंजमेण विणा छ संजम, तिण्णि दंसण, दव्वभावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया, उवसमसम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा । ८१८ ] तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अस्थि अट्ठ गुणहाणाणि, एओ जीवसमासो, छ पज्जतीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ उवसंतपरिग्गहसण्णा वि अस्थि, चारि गदीओ, पंचिदियजादी, तसकाओ, दस जोग, तिष्णि वेद अवगदवेदो वि अस्थि, चत्तारि उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर - अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर उपशान्तकषाय गुणस्थानतक आठ गुणस्थान, संज्ञी-पर्याप्त और संज्ञी अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छद्दों अपर्याप्तियां; दशों प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं तथा उपशान्तपरिग्रहसंज्ञा भी है, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, औदारिकमिश्रकाययोग आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोग इन तीन योगोंके विना शेष बारह योग, तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है, चारों कषाय तथा उपशान्तकषायस्थान भी है, आदिके चार ज्ञान, परिहारविशुद्धिसंयमके विना शेष छह संयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, औपशमिक सम्यक्त्व, संज्ञिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं । उन्हीं उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर - अवितसम्यदृष्टि गुणस्थान से लेकर उपशान्तकषाय गुणस्थानतक आठ गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं तथा उपशान्तपरिग्रहसंज्ञा भी है, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, औदारिककाययोग और वैक्रियिककाययोग ये दश योगः तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है, चारों कषाय तथा नं. ४९२ गु. | जी. | प. प्रा. सं. ग. इं. का. यो. वे. क. ज्ञा. संय द. ४ ६ ३ १२ ૮ २ ६५. १० ४ ४ १ १ पं. त्र. म. ४ ३ ४ परि. के. द. मा. ६ म. ओप. सं. आहा. साका. अवि. सं. प ६अ ७ मति. से. सं.अ. श्रुत. विना. विना. अना. अना. उप. अव. मनः. उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके सामान्य आलाप. Jain Education International 每 For Private & Personal Use Only ले. भ. स. संज्ञि. आ. उ. द्र. ६ १ १ १ २ २ www.jainelibrary.org

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