Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
६२२.] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, १. दव्व-भावेहिं छ लेस्साओ अलेस्सा वि अत्थि, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सण्णिणो असण्णिणो णेव सण्णिणो णेव असण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारूवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा सागार-अणागारेहि जुगवदुवजुत्ता वा।
२३"तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अस्थि चौदस गुणट्ठाणाणि, पंच जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ पंच पज्जत्तीओ, दस पाण णव पाण अट्ठ पाण सत्त पाण छ पाण चत्तारि पाण एग पाण, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अत्थि, चत्तारि गदी, वेइंदियादी चत्तारि जादीओ, तसकाओ, एगारह जोग अजोगो वि अत्थि, तिण्णि वेद अवगदवेदो वि अत्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अत्थि, अट्ठ णाण, सत्त संजम, चत्तारि दंसण, दव्व-भावेहि छ लेस्सा अलेस्सा वि अस्थि, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सण्णिणो असण्णिणो णेव सणिणो णेव असण्णिणो वि अत्थि, आहारिणो
लेश्याएं तथा अलेश्यास्थान भी है, भव्यासिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; छहों सम्यक्त्व, संक्षिक, असांशक तथा संशिक और असंशिक इन दोनों विकल्पोंसे रहित भी स्थान है, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी, अनाकारोपयोगी तथा साकार और अनाकार उपयोगोंसे युगपत् उपयुक्त भी होते हैं।
उन्हीं त्रसकायिक जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-चौदहों गुणस्थान, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंही पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवसंबन्धी पांच पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, पांच पर्याप्तियां: दशों प्राण, नौ प्राण, आठ प्राण, सात प्राण, छह प्राण, चार प्राण और एक प्राण; चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंशास्थान भी है, चारों गतियां, द्वीन्द्रियजातिको आदि लेकर चार जातियां, त्रसकाय, अपर्याप्तकालसंबन्धी चार योगोंको छोड़कर शेष ग्यारह योग तथा अयोगस्थान भी है, तीनों वेद तथा अपगतवेद. स्थान भी है, चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है, आठों ज्ञान, सातों संयम, चारों दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं तथा अलेश्यास्थान भी है, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक छहों सम्यक्त्व, संशिक, असंशिक तथा संशिक और असंशिक इन दोनों विकल्पोंसे रहित भी स्थान
नं. २३५
जसकायिक जीवोंके पर्याप्त आलाप. | गु., जी. प. प्रा. सं. ग. ई.। का. यो. वे. क. ज्ञा. संय. द. | ले. भ. स. | संझि. | आ. । उ.
१० ४ ४ ४ १११ म.४३ ४८ ७ ४ द्र. ६ २६ । २ १ द्वी.प.५ ९ द्वी.... व.४ :
भा. ६ म. सं. आहा. साका. त्री.प. 2 त्री. औ. १
अले. अ. | असं. | अना. चतु.प.
अनु. सं.प.
आ. १ असं.प.
अयोग.
क्षीणसं.
अपग. अकषा. <
यु.उ.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org