Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 383
________________ ६९.] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, १. तेंसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि तिण्णि गुणट्ठाणाणि, सत्त जीवसमासा, छ अपज्जत्तीओ पंच अपज्जत्तीओ चत्तारि अपज्जत्तीओ, सत्त पाण सत्त पाण छ पाण पंच पाण चत्तारि पाण तिण्णि पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिण्णि गदीओ, एइंदियजादिआदी पंच जादीओ, पुढवीकायादी छ काय, तिण्णि जोग, णqसयवेद, चत्तारि कसाय, पंच णाण, असंजमो, तिण्णि देसण, दव्वेण काउ-सुक्कलेस्सा, भावेण किण्ह-णील-काउ. लेस्साओ; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं सासण-खइय-वेदगमिदि चत्तारि समत्ताणि, सण्णिणो असण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारु: वजुत्ता वा। णबुंसयवेद-मिच्छाइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, चोद्दस जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ छ अपजत्तीओ पंच पज्जत्तीओ पंच अपज्जत्तीओ चत्तारि पज्जत्तीओ चत्तारि अपज्जत्तीओ दस पाण सत्त पाण णव पाण सत्त पाण अट्ठ पाण छह पाण उन्हीं नपुंसकवेदी जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और अविरतसम्यग्दृष्टि ये तीन गुणस्थान, अपर्याप्तकालभावी सात जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां. पांच अपर्याप्तियां. चार अपर्याप्तियां: सात प्राण. सात प्राण, छह प्राण, पांच प्राण, चार प्राण और तीन प्राण; चारों संज्ञाएं, देवगतिके विना शेष तीन गतियां, एकेन्द्रियजाति आदि पांचों जातियां, पृथिवीकाय आदि छहों काय, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण ये तीन योग, नपुंसकवेद, चारों कषाय, आदिके दो अज्ञान और आदिके तीन ज्ञान इसप्रकार पांच झान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ललेश्याएं, भावसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; मिथ्यात्व, सासादन, क्षायिक और वेदक इसप्रकार चार सम्यक्त्व, संशिक, असंक्षिक, आहारक, अनाहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं। . नपुंसकवेदी मिथ्यादृष्टि जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, चौदह जीवसमास; छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां पांच पर्याप्तियां, पांच अपर्याप्तियां चार पर्याप्तियां, चार अपर्याप्तियां दशों प्राण, सात प्राण; नौ प्राण, सात प्राण; आठ प्राण, छह प्राण; नं. ३१९ नपुंसकंवेदी जीवोंके अपर्याप्त आलाप. शु. जी. प. प्रा. सं. ग. ई. का. यो. वे. क. ज्ञा. संय. द. ले. म. स. [ संहि. आ. उ. | ७ ४३ ५६ ३१४५ कुम.१३ . २२ ४ २ २ २ न. औ.मि. न. कुश्रु. असं. | के.द का. म. मि. सं. आहा. साका. मति. विना. शु. अ. सासा. असं. अनाअना. कार्म. भ्रत. भा.३ क्षा. अव. अशु. क्षायो. अप. 6 5 60 वै.मि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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