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७२९ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. तेसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाण, एओ जीवसमासो, छ अपज्जत्तीओ, सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, तिण्णि जोग, दो वेद, चत्तारि कसाय, दो णाण, असंजमो, तिण्णि दंसण, दव्वेण काउसुक्कलेस्साओ, भावेण छ लेस्साओ; भवसिद्धिया, तिण्णि सम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा ।
___संजदासंजदप्पहुडिं जाव खीणकसाओ त्ति ताव मूलोघ-भंगो। णवरि आभिणिबोहिय-सुदणाणाणि वत्तव्याणि । एवमोहिणाणं पि वत्तव्यं । णवरि ओहिणाणं एकं चेव भाणिदव्वं । णाण-दसणमग्गण्णाआ जेण खओवसममस्सिऊण द्विआओ तेण मदिसुदणाणेसु णिरुद्धसु दोहि तीहि चउहि वा ओहि-मणपज्जवणाणेसु णिरुद्धेसु तीहि
उन्हीं आभिनिबोधिक और श्रुतज्ञानी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-एक अविरतसम्यग्दष्टि गुणस्थान, एक संक्षी-अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, सात प्राण, चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, प्रसकाय, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकमिश्र और कार्मणकाययोग ये तीन योगः पुरुषवेद और नपुंसकवेद ये दो वेद, चारों कषाय, मति और श्रुत ये दो ज्ञान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे छहों लेश्याएंभव्यसिद्धिक, औपशमिक आदि तीन सम्यक्त्व, संक्षिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
___ संयतासंयत गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय गुणस्थान तकके मतिश्रुतज्ञानी जीवोंके आलाप मूल ओघालापोंके समान होते हैं। विशेष बात यह है कि ज्ञान आलाप कहते समय आमिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान ही कहना चाहिए । इसीप्रकार अवधिज्ञानके आलाप जानना चाहिए। विशेष बात यह है कि यहां पर पूर्वोक्त दो ज्ञानोंके स्थानमें एक अवधिज्ञान ही कहना चाहिए।
शंका-जब कि मतिज्ञानादि क्षायोपशमिक ज्ञानमार्गणा और चक्षुदर्शनादि क्षायोपशमिक दर्शनमार्गणाएं अपने अपने आवरणीय कर्मों के क्षयोपशमके आश्रयसे स्थित हैं, तब मतिखान और श्रुतज्ञान-निरुद्ध आलापोंके कहने पर दो, तीन अथवा चार ज्ञान तथा अवधिज्ञान नं. ३६९ मति श्रुतज्ञानी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके अपर्याप्त आलाप. गु. जी. । प. प्रा. सं. | ग.) ई.का. यो. वे. क. ना. संय.। द. | ले. म. | स. सझि. आ. | उ. ११ ६अ. ७|४|४|१|१३ २४ २ | १ | ३ द्र. २१ ३ १/२ । ।
पं. . औ.मि. पु. मति. असं. के.द. का. भ. औप. स. आहा. साका.
वै.मि. नं.। श्रुत. विना. शु. क्षा. अना. अना. कार्म.
भा.६ क्षायो.
अवि. -
सं.अ.
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