________________
७४४ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. छ सम्मत्तं, सण्णिणो असणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा ।
तेसिं चेव पजत्ताणं भण्णमाणे अत्थि बारह गुणहाणाणि, सत्त जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ पंच पज्जत्तीओ चत्तारि पज्जत्तीओ, दस पाण णव पाण अट्ठ पाण सत्त पाण छ पाण चत्तारि पाण, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अत्थि, चत्तारि गदीओ, एंइदियजादि-आदी पंच जादीओ, पुढवीकायादी छ काय, एगारह जोग, तिणि वेद अवगदवेदो वि अत्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अस्थि, सत्त णाण, सत्त संजम, अचक्खुदंसण, दव्य-भावहिं छ लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सणिणो असण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारवजुत्ता वा ।
तेसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि चत्तारि गुणहाणाणि, सत्त जीवसमासा, छ अपज्जत्तीओ पंच अपज्जत्तीओ चत्तारि अपज्जत्तीओ, सत्त पाण सत्त पाण छ पाण
आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
उन्हीं अचक्षुदर्शनी जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-आदिके बारह गुणस्थान, सात पर्याप्तक जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, पांच पर्याप्तियां, चार पर्याप्तियां: दशों प्राण, नौ प्राण, आठ प्राण, सात प्राण, छह प्राण, चार प्राण; चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंज्ञास्थान भी है. चारों गतियां. एकेन्द्रियजाति आदि पांचों जातियां पृथिवीकाय आदि छहों काय, पर्याप्तकालभावी ग्यारह योग, तीनों वेद, तथा अपगतवेदस्थान भी है, चारों कषाय अकषायस्थान भी है, केवलज्ञानके विना सात ज्ञान, सातों संयम, अचक्षुदर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; छहों सम्यक्त्व, संशिक, असंशिक आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
___उन्हीं अचक्षुदर्शनी जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, अविरतसम्यग्दृष्टि और प्रमत्तसंयत ये चार गुणस्थान, सात अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, पांच अपर्याप्तियां, चार अपर्याप्तियां; सात प्राण, सात प्राण,
नं.३८८
अचक्षुदर्शनी जीवोंके पर्याप्त आलाप. | गु. जी. प.। प्रा, सं. ग. इं.का. यो. वे. क. ज्ञा. | संय. द. | ले. ( भ. स. संज्ञि. आ. | उ.
११ म.४३ ४७ ७ / १ द्र.६२६ २ १ २ मि. पर्या. ५
व.४
- केव. अच. भा.६ भ. सं. आहा. साका. औ.१
क्षीणसं.
अपग. अकषा.
अना.
आ. १
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org