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१, १.] संत-परूवणाणुयोगदारे लेस्सा-आलाववण्णणं
[७५१ चत्तारि गईओ, पंच जादीओ, छ काय, तेरह जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, छ णाण, असंजमो, तिण्णि दसण, दव्वेण छ लेस्साओ, भावेण किण्हलेस्सा; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सण्णिणो असणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।
"तेसिं चेव पजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि चत्तारि गुणड्डाणाणि, सत्त जीवसमासा छ पज्जत्तीओ पंच पज्जत्तीओ चत्तारि पजत्तीओ, दस पाण णव पाण अट्ठ पाण सत्त पाण छ पाण चत्तारि पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिणि गईओ, देवगई णस्थि; देवाणं पञ्जत्तकाले असुह-ति-लेस्साभावादो । पंच जादीओ, छ काय, दस जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, छ णाण, असंजमो, तिणि दंसण, दव्वेण छ लेस्साओ, भावेण किण्हलेस्सा; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सण्णिणो असणिणो, आहारिणो,
चारों गतियां, पांचों जातियां, छहों काय, आहारककाययोगद्विकके विना तेरह योग, तीनों वेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान और आदिके तीन शान इसप्रकार छह शान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावले कृष्ण लेश्याः भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक छहों सम्यक्त्व, संक्षिक, असंक्षिक; आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
उन्हीं कृष्णलेश्यावाले जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर--आदिके चार गुणस्थान, सात पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, पांच पर्याप्तियां, चार पर्याप्तियां दशों प्राण, नौ प्राण, आठ प्राण, सात प्राण, छह प्राण, चार प्राण; चारों संशाएं, नरकगति तिर्यंचगति और मनुष्यगति ये तीन गतियां, यहांपर देवगति नहीं हैं। क्योंकि, देवों के पर्याप्तकालमें अशुभ तीन लेश्याओंका अभाव है। पांचों जातियां, छहाँ काय, चारों मनो. योग, चारों वचनयोग, औदारिककाययोग और वैक्रियिककाययोग ये दश योग, तीनों वेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान और आदिके तीन झान ये छह झान, असंयम, भाविके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे कृष्णलेश्या; भव्यसिद्धिक, अभयसिद्धिक, छहों
नं. ३९७
कृष्णलेश्यावाले जीवोंके पर्याप्त आलाप. । गु. जी. प. प्रा. सं. ग. ई. का. यो. वे. क.सा. संय. द. ले. भ. स. सशि. आ. | उ. १०४ ३ ५६ २०३४६१३ द्र.६२६ २१ २
म.४
सान. असं. के.द. मा. १ म. सं. आहा-साका.
विना. कृष्ण. अ. असं.
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अना.
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