Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 479
________________ ७८६ ] खंडागमे जीवद्वाणं [ १,१. असंजमो, दो दंसण, दव्वेण छ लेस्साओ, भावेण पम्मलेस्सा, भवसिद्धिया, सम्मामिच्छत्तं, सण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा । पम्मलेस्सा-असंजदसम्माइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणट्ठाणं, वे जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ छ अपज्जतीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिष्णि गदीओ, पंचिदियजादी, तसकाओ, तेरह जोग, तिष्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिणि णाण, असंजमो, तिष्णि दंसण, दव्वेण छ लेस्साओ, भावेण पम्मलेस्सा; भवसिद्धिया, तिष्णि सम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा । तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, छ पज्जतीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिष्णि गदीओ, पंचिदियजादी, तसकाओ, काययोग और वैक्रियिककाययोग ये दश योग; तीनों वेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञानोंसे मिश्रित आदिके तीन ज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्यसे छद्दों लेश्याएं, भावसे पद्मलेश्या भव्यसिद्धिक, सम्यग्मिथ्यात्व, संज्ञिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं । पद्मलेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि जीवों के सामान्य आलाप कहने पर - एक अविरत - सम्यग्दृष्टि गुणस्थान, संक्षी-पर्याप्त और संत्री-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तयां; दश प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, नरकगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, सकाय, आहारककाययोगद्विकके विना शेष तेरह योग; तीनों वेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छद्दों लेश्याएं, भावसे पद्मलेश्या; भव्यसिद्धिक, औपशमिकादि तीन सम्यक्त्व, संज्ञिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं । उन्हीं पद्मलेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप क पर - एक अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, एक संक्षी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दश प्राण, चारों संज्ञाएं, नरकगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, बसकाय, चारों मनोयोग, नं. ४४८ गु. जी. प. प्रा. सं १ २ | ६१. १० ४ ३ १ १ १३ अवि सं.प. ६अ. ७ ति. पं. त्र. आ. द्वि सं.अ. विना. पद्मलेश्यावाले असंयत सम्यग्दष्टि जीवोंके सामान्य आलाप. ग . इं. का.) यो. वे. क. ज्ञा. Jain Education International ३ ४ ३ | संय | द. १ ३ द्र. ६ १ ३ प. सं. क्षा. क्षायो. ले. | भ.) स. संज्ञि. आ. १ २ मति. असं. के. द मा. १ भ. भत. त्रिना. प. अब. For Private & Personal Use Only उ. २ आहा. साका. अना. अना. www.jainelibrary.org

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