Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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७९४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. भावेण सुक्कलेस्सा; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, सणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा ।
सुक्कलेस्सा-सासणसम्माइट्ठीणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणट्ठाणं, दो जीवसमासा, छ पजत्तीओ छ अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिषिण गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, बारह जोग, ओरालियमिस्सकायजोगो णस्थि । कारणं, देवमिच्छाइद्वि-सासणसम्माइट्ठीणं तिरिक्ख-मणुस्सेसुप्पज्जमाणाणं अमुणिय-परमत्थाणं तिब्धलोहाणं संकिलेसेण तउ पम्म सुक्कलेस्साओ फिट्टिऊण किण्ह-णील-काउलेस्साणं एगदमा भवदि । सम्माइट्ठीणं पुण मणुस्सेसु चेव उप्पज्जमाणाणं मंदलोहाणं समुणिदपरमत्थाणं अरहंतभयवंतम्हि छिण्ण-जाइ-जरा-मरणम्हि दिण्णबुद्धीणं तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साओ चिरंत
शुक्ल लेश्याएं, भावसे शुक्ललेश्या; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; मिथ्यात्व, संशिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
शुक्ललेश्यावाले सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-एक सासादन गुणस्थान, संशी-पर्याप्त और संज्ञी-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां; दशों प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, नरकगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, औदारिकमिश्र और आहारककाययोगद्विकके विना शेष बारह योग होते हैं। किन्तु यहां पर औदारिकमिश्रकाययोग नहीं होता है । इसका कारण यह है कि, तिर्यंच और मनुष्यों में उत्पन्न होनेवाले, परमार्थके अजानकार और तीव्र लोभकषायवाले ऐसे मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि देवोंके मरते समय संक्लेश उत्पन्न हो जानेसे तेज, पद्म और शुक्ल लेश्याएं नष्ट होकर कृष्ण, नील और कापोत लेश्यामेंसे यथासंभव कोई एक लेश्या हो जाती है। किन्तु जो मनुष्यों में ही उत्पन्न होनेवाले हैं, मंद लोभकषायवाले हैं, परमार्थके जानकार हैं, और जिन्होंने जन्म, जरा और मरणके नष्ट करनेवाले अरहंत भगवन्तमें अपनी बुद्धिको लगाया है ऐसे सम्यग्दृष्टि देवोंके चिरंतन (पुरानी) तेज, पद्म और शुक्ल लेश्याएं मरण करनेके
१ प्रतिषु । छिण्णबुद्धीणं' इति पाठः
नं. ४५९ शुक्ललेश्यावाले मिथ्यादृष्टि जीवोंके अपर्याप्त आलाप. | गु. जी. प. प्रा. सं. ग. इं.का. यो. वे.क./ ज्ञा. । संय. द. ! ले. भ. स. संझि. आ. | उ. । १६.७४ १११२१/४ २ १ २ द्र.२२११२२ देव, पं. . वै. मि. पु. कुम. असं. चक्षु. का. म. मि. सं. आहा. साका. कुश्रु. अच. शु. अ.
अना. अना. मा.१
कामे.
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