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१, १.] संत-पख्वणाणुयोगदारे भविय-आलाववण्णणं
[८०१ जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, चत्तारि णाण, तिण्णि संजम, तिण्णि दंसण, दव्वेण छ लेस्साओ, भावेण सुक्कलेस्सा; भवसिद्धिया, तिण्णि सम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।
अपुव्ययरणप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति ओघ-भंगो; तेसु सुक्कलेस्सा-वदिरित्तण्णलेस्साभावादो । अलेस्साणं अजोगि-सिद्धाणं ओघ-भंगो चेव ।
एवं लेस्सामग्गणा समत्ता । भवियाणुवादेण भवसिद्धियाणं भण्णमाणे मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ओघ-भंगो । णवरि भवसिद्धिया त्ति वत्तव्वं ।
अभवसिद्धियाणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, चोद्दस जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ पंच पज्जत्तीओ पंच अपज्जत्तीओ चत्तारि पज्जत्तीओ चत्तारि अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण णव पाण सत्त पाण अट्ठ पाण छ पाण सत्त पाण पंच पाण छ पाण चत्तारि पाण चत्तारि पाण तिण्णि पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गदीओ, पंच जादीओ, छ काय, तेरह जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि अण्णाण, और औदारिककाययोग ये नौ योग; तीनों वेद, चारों कषाय, आदिके चार ज्ञान, सामायिक, छेदोपस्थापना और परिहारविशुद्धि ये तीन संयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे शुक्ललेश्या; भव्यसिद्धिक, औपशमिक आदि तीन सम्यक्त्व, संशिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं। ___अपूर्वकरण गुणस्थानसे लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तकके शुक्ललेश्यावाले जीवोंके आलाप ओघ आलापके समान ही होते हैं, क्योंकि, इन गुणस्थानों में शुक्ललेश्याको छोड़कर अन्य लेश्याओंका अभाव है।
. लेश्यारहित अयोगिकेवली और सिद्ध जीवोंके आलाप ओघ आलापोंके ही समान होते हैं।
इस प्रकार लेश्यामार्गणा समाप्त हुई। भव्यमार्गणाके अनुवादसे भव्यसिद्धिक जीवोंके आलाप कहने पर मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तकके आलाप ओघ आलापोंके समान होते हैं। विशेष बात यह है कि भव्य आलाप कहते समय एक भव्यसिद्धिक आलाप ही कहना चाहिए।
अभव्यसिद्धिक जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, चौदहों जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां पांच पर्याप्तियां, पांच अपर्याप्तियां; चार पर्याप्तियां, चार अपर्याप्तियां; दशों प्राण, सात प्राण; नौ प्राण, सात प्राण; आठ प्राण, छ प्राण; सात प्राण, पांच प्राण; छ प्राण, चार प्राण; चार प्राण और तीन प्राण; चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, पांचों जातियां, छहों काय, आहारककाययोगद्विकके विना शेष तेरह योग, तीनों घेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्य और भावसे
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