Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवाणं
[१, १. ___ पम्मलेस्सा-संजदासंजदाणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ पजचीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, दो गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, णव जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि णाण, संजमासंजमो, तिणि दंसण, दन्वेण छ लेस्साओ, भावेण पम्मलेस्सा; उत्तं च पिंडियाए
लेस्सा य दव्व-भावं कम्मं णोकम्ममिस्सयं दव्वं ।
जीवस्स भावलेस्सा परिणामो अप्पणो.जो सो ॥ २६८॥ भवसिद्धिया, तिणि सम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।
पम्मलेस्सा-पमत्तसंजदाणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, दो जीवसमासा, छ साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
पद्मलेश्यावाले संयतासंयत जीवोंके आलाप कहने पर-एक देशविरत गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवसमास. छहों पर्याप्तियां. दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, तिर्यंचगति और मनुष्यगति ये दो गतियां, पंचेन्द्रियजाति, अस काय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग और औदारिककाययोग ये नौ योग; तीनों वेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान, सयमासंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे पद्मलेश्या होती है। पिंडिका नामके ग्रन्थमें कहा भी है:
लेश्या दो प्रकारकी है, द्रव्यलेश्या और भावलेश्या । नोकर्मवर्गणाओंसे मिश्रित कर्मवर्गणाओंको द्रव्यलेश्या कहते हैं। तथा जीवका कषाय और योगके निमित्तसे होनेवाला जो आत्मिक परिणाम है, वह भावलेश्या कहलाती है ॥ २२८॥
लेश्या आलापके आगे भव्यासिद्धिक, औपशमिक आदि तीन सम्यक्त्व, संक्षिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
पद्मलेश्यावाले प्रमत्तसंयत जीवोंके आलाप कहने पर-एक प्रमत्तसंयत गुणस्थान, संझी-पर्याप्त और संज्ञी-अपर्याप्तये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां; दशों प्राण,
१ आ प्रतौ । पिटियाए ' इति पाठः। नं. ४५१
पालेश्यावाले संयतासंयत जीवोंके आलाप. | गु. । जी. प. प्रा. सं.| ग. ई. का. यो. वे. क. ना. संय. द. | ले. म. स. संमि. आ. उ. ११ ६ १०४२११९३४३ २ ३ द्र.
६३११२ देश. सं. प. ति. पं. त्र. म. ४ मति. देश. के.द. भा. १ म. | औप. सं. आहा. साका. श्रुत. विना. प.
क्षायो.
क्षा.
अना.
अव..
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