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वजुत्ता वा ।
मणपज्जवणाण- पमत्त संजदप्पहुडि जाव खीणकसाओ त्ति ताव मूलोघ - भंगो । वरि मणपज्जवणाणं एकं चैव वत्तव्यं । परिहारसुद्धिसंजमो वि णत्थि त्ति भाणिदव्वं ।
केवलणाणाणं भण्णमाणे अत्थि वे गुणट्ठाणाणि अदीदगुणट्ठाणं पि अस्थि, दो जीवसमासा एगो वा अदीदजीवसमासो वि अत्थि, छ पज्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ अदीदीओ व अस्थि, चत्तारि पाण दो पाण एग पाण अदीदपणा वि अस्थि, खीणसणाओ, मणुसगदी सिद्धगदी वि अस्थि, पंचिदियजादी अणिदियं पि अस्थि, तसकाओ अकाओ वि अस्थि, सत्त जोग अजोगो वि अस्थि, अवगदवेद, अकसाओ, केवलणाणं, जहाक्खादसुद्धिसंजमो णेव संजमो णेव असंजमो णेव संजमा संजमा वि
संत-परूवणाणुयोगद्दारे णाण - आलाववण्णणं
मिकसम्यक्त्वमें द्वितीयोपशमका ही ग्रहण करना चाहिए, प्रथमोशमका नहीं । सम्यक्त्व आलापके आगे संज्ञिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं ।
मन:पर्ययज्ञानी जीवोंके प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर क्षीणकषाय गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानके आलाप मूल ओघालापके समान हैं। विशेष बात यह है कि ज्ञान आलाप कहते समय एक मन:पर्ययज्ञान ही कहना चाहिए। तथा संयम आलाप कहते समय परिहारविशुद्धिसंयम नहीं होता है, ऐसा कहना चाहिए ।
केवलज्ञानी जीवोंके आलाप कहने पर — सयोगिकेवली और अयोगिकेवली ये दो गुणस्थान तथा अतीतगुणस्थान भी हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त ये दो अथवा एक पर्याप्त जीवसमास है तथा अतीतजीवसमासस्थान भी है, छद्दों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां तथा अतीत पर्याप्तिस्थान भी होता है, वचनबल, कायबल, आयु और श्वासोच्छ्रास ये चार प्राण, अथवा समुद्घातगत अपर्याप्तकालमें आयु और कायबल ये दो प्राण और अयोगिकेवलीके एक आयु प्राण तथा अतीतप्राणस्थान भी है, क्षीणसंज्ञा, मनुष्यगति तथा सिद्धगति भी है, पंचेन्द्रियजाति तथा अतीन्द्रियस्थान भी है, त्रसकाय तथा अकषायस्थान भी है, सत्य और अनुभय ये दो मनोयोग, ये ही दोनों वचनयोग, औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये सात योग तथा अयोगस्थान भी है, अपगतवेद, अकषाय, केवलज्ञान, यथाख्यात
नं. ३७०
गु. जी. प. प्रा. सं. ग. इं. | का. यो. |वे. क. | ज्ञा. | संय.
१
७ १ ६ १० ४
प्रम. सं.प.
से.
क्षीण.
क्षीणसं. 4.
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सन
मन:पर्ययज्ञानी जीवोंके आलाप.
पंच. .
स.
[ ७२९
म. ४ पु.
९ १ ४ १ ४ ३ द्र. ६ १ ३ मनः सामा. के. द. भा. ३ भ. औप. सं. छेदो. विना. शुभ.
सूक्ष्म.
यथा.
अकषा
द. ले. भ. स. संज्ञि. आ.
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क्षा. क्षायो.
उ.
१
२
आहा. साका
अना.
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