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१, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे संजम-आलाववष्णणं
[७३० छ पजत्तीओ पंच पजत्तीओ चत्तारि पजत्तीओ, दस पाण णव पाण अट्ठ पाण सत्त पाण छ पाण चत्तारि पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गईओ, एइंदियजादि-आदी पंध जादीओ, पुढवीकायादी छ काय, दस जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, छ णाण, असंजमो, तिण्णि दसण, दव-भावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सण्णिणो असण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुखजुत्ता वा।
तेसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि तिण्णि गुणड्डाणाणि, सत्त जीबसमासा, छ अपज्जत्तीओ पंच अपज्जत्तीओ चत्तारि अपजत्तीओ, सत्त पाण सत्त पाण छ पाण पंच पाण चत्तारि पाण तिण्णि पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गदीओ, एइंदियजादिआदी पंच जादीओ, पुढवीकायादी छ काय, तिण्णि जोग, तिण्णि बेद, चत्तारि कसाय,
सात पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, पांच पर्याप्तियां चार पर्याप्तियां; दशों प्राण, नौ प्राण, आठ प्राण, सात प्राण, छह प्राण, चार प्राणः चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, एकेन्द्रियजाति आदि पांचों जातियां. पृथिवीकाय आदि छहों काय, चारों मनोयोग, चारों: बचनयोग, औदारिककाययोग और वैक्रियिककाययोग ये दश योग, तीनों वेद, चारों कषाय, तीनों भक्षान और आदिके तीन शान इस प्रकार छह मान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; छहों सम्यक्त्व, संक्षिक, असंक्षिक; आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
__ उन्हीं असंयत जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-मिथ्याष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और अविरतसम्यग्दृष्टि ये तीन गुणस्थान, सात अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, पांच अपर्याप्तियां, चार अपर्याप्तियां; सात प्राण, सात प्राण, बह प्राण, पांच प्राण, चार प्राण, तीन प्राण; चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, एकेन्द्रियजाति आदि पांचों जातियां, पृथिवीकाय आदि छहों काय, औदारिकमिभकाययोग, वैक्रियिकमिभकाययोग, और कार्मणकाययोग ये तीन योग; तीनों वेद, चारों कषाय, कुमति, कुश्रुत और आदिक
नं. ३७९
असंयत जीवोंके पर्याप्त आलाप. । गु | जी. प. प्रा. । सं. ग. ई. का. यो. ने. क.सा. | संय. द. | ले.
म. स. संझि. म. |सं. आहा- साका.
अना..
पया.
सान. असं. के.द. भा.
३ बिना. अशा.
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