Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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०१. छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[१,१. पब्जचीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, मणुसगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, णव जोग आहाराहारमिस्सा णत्थि, पुरिसवेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि णाण मणपजवणाण पत्थि, कारणं आहारदुगं मणपज्जवणाणं परिहारसुद्धिसंजमो एदे जुगवदेव ण उप्पजंति । परिहारसुद्धिसंजमो, तिण्णि दंसण, दव्वेण छ लेस्साओ, भावेण तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साओ; भवसिद्धिया, उवसमसम्मत्तं विणा दो सम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा । .. पमत्त-अप्पमत्त-परिहारसुद्धिसंजदाणं पुध पुध भण्णमाणे ओघ-मंगो। णवरि आहारदुग-मणपजवणाण-उवसमसम्मत्त-सामाइय-छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजमा च णत्थि । परिहारसुद्धिसंजमो एको चेव संजमट्टाणे । वेदट्ठाणे पुरिसवेदो चेव वत्तव्यो।
दो गुणस्थान, एक संझी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संक्षाएं, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, सकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग और औदारिकफाययोग ये नौ योग होते हैं, किन्तु यहांपर आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोग नहीं होते हैं। पुरुषवेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान होते हैं, किन्तु यहांपर मनःपर्ययज्ञान नहीं है, क्योंकि, आहारकद्विक, मनःपर्ययज्ञान और परिहारविशुद्धिसंयम ये तीनों युगपत् नहीं उत्पन्न होते हैं। ज्ञान आलापके आगे परिहारविशुद्धिसंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रष्यसे छहों लेश्याएं, भावसे तेज, पद्म और शुक्ल लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, औपशमिकसम्यक्त्यके विना क्षायिक और क्षायोपशमिक ये दो सम्यक्त्व; संक्षिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
प्रमत्तसंयत-परिहारविशुद्धिसंयत और अप्रमत्तसंयत-परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंके आलाप पृथक् पृथक् कहने पर उनके आलाप ओघालापके समान हैं। विशेष बात यह है कि यहां पर आहारककाययोगद्विक, मनःपर्ययज्ञान, औपशमिकसम्यक्त्व, सामायिकशुद्धिसंयम
और छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयम इतने आलाप नहीं होते हैं। संयमस्थान पर एक परिहारविशुद्धिसंयम ही होता है। तथा वेदस्थानपर एक पुरुषवेद ही कहना चाहिए।
१ प्रतिषु 'एदाओ' इति पाठः। नं. ३७६
परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंके आलाप. । गु. जी. प. प्रा. | सं.) ग. ई. का. यो. । वे. क. झा. | संय. द. ले. भ. स. | संक्षि. आ.| उ. |
प्र. सं.प.
म. पं. स. म. ४ पु.]
मति. परि. के. द. भा.म. क्षा. सं. आहा. साका. विना. शुभ. क्षायो.
अना. अव.
औ.१
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