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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, १.
तिणि वेद, कोधकसाय, चत्तारि णाण, दो संजम, तिण्णि दंसण, दव्वेण छ लेस्साओ, भावेण सुक्कलेस्सा; भवसिद्धिया, दो सम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति
अणागारुवजुत्ता वा ।
कोधकसाय - विदियअणियट्टीणं भण्णमाणे अत्थि एगं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, छ पज्जत्तीओ, दस पाण, परिग्गहसण्णा, मणुसगदी, पंचिदियजादी, तसकाओ, णव जोग, अवगदवेदो, कोधकसाय, चत्तारि णाण, दो संजम, तिण्णि दंसण, दव्त्रेण छ लेस्साओ, भावेण सुक्कलेस्सा, भवसिद्धिया, दो सम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो, सागारुजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा 1
एवं माण - मायाकसायाणं पि मिच्छाइट्टिप्पहुडिं जाव अणियट्टित्ति वत्तव्यं । वरि जत्थ कोधकसाओ तत्थ माण- मायाकसाया वत्तव्या । लोभकसायस्स कोधकसायभंग । वर ओघालावे भण्णमाणे दस गुणट्ठाणाणि, छ संजम, लोभकसाओ च वत्तव्वो ।
वेद, क्रोधकषाय, आदिके चार ज्ञान, सामायिक और छेदोपस्थापना ये दो संयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे शुक्ललेश्या; भव्यसिद्धिक, औपशमिक और क्षायिक ये दो सम्यक्त्व, संज्ञिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं ।
क्रोधकषाय द्वितीय भागवर्ती अनिवृत्तिकरण जीवोंके आलाप कहने पर - एक अनिवृत्तिकरण गुणस्थान, एक संज्ञी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, परिग्रहसंज्ञा, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, पूर्वोक्त नौ योग, अपगतवेद, क्रोधकषाय, आदिके चार ज्ञान, सामायिक और छेदोपस्थापना ये दो संयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे शुक्ललेश्या, भव्यसिद्धिक, औपशमिक और क्षायिक ये दो सम्यक्त्व, संज्ञिक, आहारक, साकारोपयोगी, और अनाकारोपयोगी होते हैं ।
इसीप्रकार से मानकषायी और मायाकषायी जीवोंके मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थानतकके आलाप कहना चाहिए। विशेष बात यह है कि कषाय आलाप कहते समय जहां ऊपर क्रोधकषाय कहा है, वहांपर मानकषाय और मायाकषाय कहना चाहिए। लोभshares आलाप क्रोधकषायके आलापोंके समान हैं। विशेष बात यह है कि लोभ कषायके ओघालाप कहने पर आदिके दश गुणस्थान, संयम आलाप कहते समय यथाख्यातसंयमके
नं. ३५०
क्रोधकषायी द्वितीय भागवर्ती अनिवृत्तिकरण जीवोंके आलाप.
गु. जी. | प. प्रा. सं. ग. इं. का. यो. | वे. क. ज्ञा. संय. द. ले. भ. स. संज्ञि. आ. उ. १४ मति २ ३ द्र. ६१ २ १ १ क्रो. श्रुत. सामा, के. द. मा. १ भ. औप. सं. आहा. साका. अव. छेदो. विना शुक्ल. क्षा.
१ १ ६ १० १ १ १ १ ९
२
सं.प.
प.
म. पं.
म. ४
अना.
मनः.
अनि.द्वि. /
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त्रस.
०
अपग
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