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१, १.]
संत-परूवणाणुयोगद्दारे कसाय-आलाववण्णणं ३५अकसायाणं भण्णमाणे अत्थि चत्तारि गुणट्ठाणाणि अदीदगुणट्ठाणं पि अत्थि, दो जीवसमासा अदीदजीवसमासा वि अस्थि, छ पजत्तीओ छ अपज्जत्तीओ अदीदपज्जत्ती वि अत्थि, दस चत्तारि दो एग' पाण अदीदपाणो वि अत्थि, खीणसण्णा, मणुसगदी सिद्धगदी वि अस्थि, पंचिंदियजादी अणिदियत्तं पि अत्थि, तसकाओ अकायत्तं पि अत्थि, एगारह जोग अजोगो वि अत्थि, अवगदवेदो, अकसाओ, पंच णाण, जहाक्खादविहारसुद्धिसंजमो णेव संजमो णेव असंजमो णेव संजमासंजमो वि अत्थि, चत्तारि दसण. दव्वेण छ लेस्सा, भावेण सुक्कलेस्सा अलेस्ता वि अत्थिा भवसिद्धिया णेव भवसिद्धियां णेव अभवसिद्धिया, दो सम्मत्तं, सण्णिणो णेव सणिणो णेव असणिणो, आहारिणो
विना छह संयम और कषाय आलाप कहते समय लोभकषाय कहना चाहिए ।
अकषायी जीवोंके आलाप कहने पर-उपशान्तकषाय, क्षीणकषाय, सयोगिकेवली और अयोगिकेवली ये चार गुणस्थान तथा अतीतगुणस्थान भी है, संक्षी-पर्याप्त और अपर्याप्त ये दो जीवसमास तथा अतीतजीवसमासस्थान भी है, छहों पर्याप्तियां, छहों अपयोप्तियां तथा अतीतपर्याप्तिस्थान भी है। दशों प्राण, सयोगिकेवलीके संभवित चार प्राण और दो प्राण, अयोगिकेवलोके संभवित एक प्राण और सिद्ध जीवोंकी अपेक्षासे अतीतप्राणस्थान भी है; क्षीणसंशा, मनुष्यगति तथा सिद्धगति भी है, पंचेन्द्रियजाति तथा अनिन्द्रियत्वस्थान भी है, उसकाय तथा अकायत्वस्थान भी है, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये ग्यारह योग तथा अयोगस्थान भी है, अपगतवेद, अकषाय, पांचों सम्यग्ज्ञान, यथाख्यातविहारशुद्धिसंयम तथा संयम, संयमासंयम और अंसंयम इन तीनोंसे रहित स्थान भी है, चारों दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे शुक्ललेश्या तथा अलेश्यास्थान भी है। भव्यसिद्धिक तथा भव्यसिद्धिक और अभव्यसिद्धिक इन दोनों विकल्पोंसे रहित भी स्थान है, औपशमिक और क्षायिक ये दो सम्यक्त्व, संक्षिक तथा
१ आ. प्रतौ " एग १०-४-२-१" इति पाठः। नं. ३५१
अकषायी जीवोंके आलाप. | गु. जी. प. प्रा. सं. | ग. इं. का. यो. । वे. क. ना. | संय. द. ले. भ. स.सनि. आ. उ. ४ २ ६ अ. २,१
म. ४ मति. यथा. भा.१ म. औ सं. आहा. साका. अती सं.अ. अती. अ
व. ४0 श्रुत. अनु. शुक्ल. क्षा. अनु. अना. अना. गु. अती.पर्या. प्राप
अले.
यु.उ. मन.
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अंत. सं.प.
६५. १०,४/
क्षीणसं. .
अनि. AM अका.:
अकषा. 18
अनु.
अव.
जीव.
केव.
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