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छक्खंडागमे जीवहाणं - पुरिसवेद-सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव पढम-अणियट्टि त्ति ताव मूलोघ-भंगो । णवरि सव्वत्थ पुरिसवेदो चेव वत्तव्यो । सासण-सम्मामिच्छा-असंजदसम्माइट्ठीणं तिण्णि गदीओ वत्तव्वाओ।
३"णqसयवेदाणं भण्णमाणे अत्थि णव गुणहाणाणि, चोद्दस जीवसमासा, छ पञ्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ पंच पजत्तीओ पंच अपजत्तीओ चत्तारि पजत्तीओ चत्तारि अपजत्तीओ, दस पाण सत्त पाण णव पाण सत्त पाण अट्ठ पाण छ पाण सत्त पाण पंच पाण छ पाण चत्तारि पाण चत्तारि पाण तिणि पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिण्णि गदीओ देवगदी णत्थि, एइंदियजादि-आदी पंच जादीओ, पुढवीकायादी छक्काया, तेरह जोग, णqसयवेद,
पुरुषवेदी जीवोंके सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थानके प्रथम भागतकके आलाप मूल ओघालापोंके समान होते हैं। विशेष बात यह है कि वेद आलाप कहते समय सर्वत्र एक पुरुषवेद ही कहना चाहिए । तथा सासादनसम्यराष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके गति आलाप कहते समय नरकगतिके विना शेष तीन गतियां कहना चाहिए।
नपुंसकवेदी जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-आदिके नौ गुणस्थान, चौदहों जीवसमास, संशी-पंचेन्द्रिय जीवोंके छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां; असंही-पंचेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवोंके पांच पर्याप्तियां, पांच अपर्याप्तियां; एकेन्द्रिय जीवोंके चार पर्याप्तियां, चार अपर्याप्तियां; संज्ञी-पंचेन्द्रिय जीघोंसे लगाकर एकेन्द्रिय जीवोंतक क्रमशः पर्याप्त अपर्याप्तकालमें दशों प्राण, सात प्राण; नौ प्राण, सात प्राण; आठ प्राण, छह प्राण; सात प्राण, पांच प्राण; छह प्राण, चार प्राण; चार प्राण और तीन प्राण; चारों संशाएं, नरकगति, तिर्यचगति और मनुष्यगति ये तीन गतियां होती हैं परंतु नपुंसकवेदी जीवोंके देवगति नहीं होती है। एकेन्द्रियजाति आदि पांचों जातियां, पृथिवीकाय आदि छहों काय, आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोगके विना तेरह योग; नपुंसकवेद, चारों कषाय, मनःपर्ययज्ञान
नं. ३१७
नपुंसकवेदी जीवोंके सामान्य आलाप. गु जी. प. प्रा. सं. ग. इं. का. यो. । वे. क. ज्ञा. संय. । द. । ले. भ. स. संशि. आ. , उ. । १४६प. १०,७
आहा. मनः. | असं. के.द. भा. ६ भ. सं. आहा. साका. द्विक. केव. देश. विना. अ. असं. अना. अना. विना. विना. सामा.
९,७
आदिके.
Wom
छेदो.
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