Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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संत - परूवणाणुयोगद्दारे वेद-आलाववण्णणं
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सवेद - सास सम्माइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि एगं गुणट्ठाणं, वे जीवसमासा, छ पजत्तीओ छ अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिण्णि गईओ, चिदियजादी, तसकाओ, बारह जोग, सासणगुणेण जीवा णिरयगदीए ण उप्पज्जंति तेण वेउच्चियमिस्सकायजोगो णत्थि । णवुंसयवेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि अण्णाण, अजमो, दो दंसण, दव्व-भावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया, सासणसम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो अनाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा ।
१, १. ]
तेसिं चैव पञ्जाणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणड्डाणं, एओ जीवसमासो, छ पजत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिण्णि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, दस जोग, णउंसयवेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि अण्णाण, असंजमो, दो दंसण, दव्व
नपुंसकवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर - एक सासादन गुणस्थान, संज्ञी - पर्याप्त और संज्ञी अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छद्दों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां: दशों प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, देवगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, आहारककाययोगद्विक, और वैक्रियिकमिश्रकाययोगके विना शेष बारह योग होते हैं। यहां पर वैक्रियिकमिश्रके नहीं होनेका कारण यह है कि सासादन गुणस्थानसे मर कर जीव नरकगतिमें नहीं उत्पन्न होते हैं, इसलिए यहां पर वैक्रियिकमिश्रकाययोग नहीं है । नपुंसकवेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं भव्यसिद्धिक, सासादनसम्यक्त्व, संज्ञिक, आहारक, अनाहारकः साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं ।
नपुंसकवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों के पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर -- एक सासादन गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएँ, देवगति विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, औदारिककाययोग और वैक्रियिककाययोग ये दश योग; नपुंसकवेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्य और भावसे छद्दों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक,
नपुंसकवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके सामान्य आलाप.
नं. ३२३ [गु. जी. प. प्रा. | सं. ग. इं. का. यो. वे. क. ज्ञा. संय. द. ले भ
स.संज्ञि. आ. २ ६ १०४ ३ १ १ १२म. ४ १ ૪ ३ १ २ द्र. ६ १ १ १ २ २ सा. सं. प. प. ७ व. ४ न अज्ञा. असं चक्षु. भा. ६भ सासा. सं. आहा. साका. सं. अ ६ औ. २ अच. अना. अना.
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