Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
संत-परूवणाणुयोगद्दारे जोग-आलाववण्णणं
[६२९ वचि-कायबलणिमित्त-पुग्गल-खंधस्त अत्थित्तं पेक्खिअ पज्जत्तीओ होति त्ति सरीर-वचिपज्जत्तीओ अत्थि । चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अत्थि, चत्तारि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, चत्तारि मणजोग, तिण्णि वेद अवगदवेदो वि अत्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अत्थि, अट्ठणाण, सत्त संजम, चत्तारि दंसण, दव्व-भावहिं छ लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सण्णिणो णेव सणिणो णेव असण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुखजुत्ता वा सागार-अणागारेहिं जुगवदुवजुत्ता वा"।
मणजोगि-मिच्छाइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, छ पज्जत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, चत्तारि मणजोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि अण्णाण, असंजमो, दो दंसण,
इसलिये ये दो प्राण उनके बन जाते हैं। उसीप्रकार वचनबल और कायबल प्राणके निमित्तभूत पुद्गलस्कन्धका अस्तित्व देखा जानेसे उनके उक्त दोनों पर्याप्तियां भी पाई जाती हैं इसीलिये उक्त दोनों पर्याप्तियां भी उनके बन जाती है। प्राण आलापके आगे चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंज्ञास्थान भी है। चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, सत्यमनोयोग, असत्यमनोयोग, उचयमनोयोग और अनुभयमनोयोग ये चार मनोयोग, तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है। चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है। आठों ज्ञान, सातों संयम, चारों दर्शन, द्रष्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; छहों सम्यक्त्व, संक्षिक तथा संक्षिक और असंशिक इन दोनों विकल्पोंसे रहित भी स्थान होता है। आहारक, साकारोपयोगी, अनाकारोपयोगी तथा साकार और अनाकार इन दोनों उपयोगोंसे युगपत् उपयुक्त भी होते हैं। - मनोयोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंके आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, एक संक्षी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों सज्ञाएं, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, तीनों वेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान, असंयम, आदिके दो
नं. २४२
| गु.
जी.
मनोयोगी जीवोंके आलाप. प. प्रा. सं. ग.ई. का ) यो. वे. क. ज्ञा. संय. द. ले. म. स. संज्ञि. आ. उ. ! ३/४ ८७४ द्र.६२
सं. आहा. साका. अनु. अना,
यु.उ.
अयो.सं.प.
पचे. . त्रस.
क्षीणसं.
विना.
अपग. अकषा.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org