Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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६२८ ]
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, १.
चारि सण्णाओ, दो गदीओ, बीइंदियजादि -आदी चत्तारि जादीओ, तसकाओ, वे जोग, सयवेदो, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजमो, दो दंसण, दव्वेण काउसुक्कलेस्साओ, भावेण किण्ह णील- काउलेस्साओ; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, सण्णिणो असणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा एवं कायमग्गणा समत्ता |
२४१
जोगाणुवादेण अणुवादो मूलोध-भंगो। णवरि विसेसो तेरह गुणट्ठाणाणि, अजोगिगुणणं अदीदगुणाणं च णत्थि, तदो जाणिऊण मूलोघालावा वत्तव्त्रा ।
मणजोगीणं भण्णमाणे अस्थि तेरह गुणट्ठाणाणि, एगो जीवसमासो, छ पज्जतीओ, दस पाण। केई वचि - कायपाणे अवर्णेति, तण्ण घडदे; तेसिं सत्ति-संभवादो ।
पांच प्राण और चार प्राणः चारों संज्ञाएं, तिर्यंच और मनुष्य ये दो गतियां, द्वीन्द्रियजातिको आदि लेकर चार जातियां, त्रसकाय, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये दो योग नपुंसकवेद, चारों कषाय, आदिके दो अज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिकः मिथ्यात्व, संशिक, असंशिक; आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं 1
इसप्रकार काय मार्गणा समाप्त हुई ।
योगमार्गणा अनुवादसे आलापका कथन मूल ओघ आलापोंके समान जानना चाहिए । विशेष बात यह है कि यहां पर तेरह ही गुणस्थान होते हैं, अयोगिगुणस्थान और अतीतगुणस्थान नहीं होता है सो आगमाविरोधसे जानकर मूल ओघालाप कहना चाहिए ।
मनोयोगी जीवोंके आलाप कहने पर - आदिके तेरह गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण होते हैं । कितने ही आचार्य मनोयोगियोंके दश प्राणोंमेंसे वचन और काय प्राण कम करते हैं, किन्तु उनका वैसा करना घटित नहीं होता है, क्योंकि, मनोयोगी जीवोंके वचनबल और कायबल इन दो प्राणोंकी शक्ति पाई जाती है,
नं. २४१
. जी. प. प्रा. सं. ग. इं. का. यो. वे. क
१ ५ ६ ७ ४ २ ४ १
मि द्वी. अ. अ. ७
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श्री. ५ ६ चतु.,, अ.
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असं.," सं.
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ति. द्वी. म. त्री.
कायिक लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंके आलाप.
च.
पं.
ज्ञा. संय द.
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१. कुम. अस. चक्षु. | कुक्षु. अच.
२ १ ४ २
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कार्म.
1
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द्र. २ २ १ २
का. भ. मि.
शु. अ. भा. ३
अशु.
भ. स. संज्ञि. आ.
२
सं. आहा. असं. अना.
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उ.
२ साका अना.
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