Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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६५८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. कारणं, जादिविसेसेण संकिलेसाहियादो। भवसिद्धिया, उवसमसम्मत्तेण विणा दो सम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।
ओरालियमिस्सकायजोगि-सजोगिकेवलीण भण्णमाणे अत्थि एयं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ अपज्जत्तीओ, आयु-कालवलपाणा दो चेव होंति, पंचिंदियपाणा णत्थि; खीणावरणे खओवसमाभावादो खओवसम लक्खण-भाविदियाभावादो । ण च दविदिएण इह पओजणमत्थि, अपज्जत्तकाले पंचिंदियपाणाणमत्थित्त-पदुप्पायण-संतसुत्ते-दंसणादो । मण-वचि-उस्सासपाणा वि तत्थ णत्थि, मण-वचि-उस्सासपज्जत्ती-सण्णिद-पोग्गलखंध
_ शंका-नारकी सम्यग्दृष्टि जीव मरते समय अपनी पुरानी कृष्णादि अशुभ लेश्याओंको क्यों नहीं छोड़ते हैं ?
समाधान- इसका कारण यह है कि नारकी जीवोंके जातिविशेषसे ही अर्थात् स्वभावत संक्लेशकी अधिकता होती है, इसकारण मरणकालमें भी वे उन्हें नहीं छोड़ सकते हैं।
लेश्या आलापके आगे भव्यसिद्धिक, औपशमिकसम्यक्त्वके विना दो सम्यक्त्व, संशिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
औदारिकमिश्रकाययोगी सयोगिकेवली जिनके आलाप कहने पर-एक सयोगिकेवली गुणस्थान, एक अपर्याप्तक जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, आयु और कायबल ये दो प्राण होते हैं। किन्तु पांच इन्द्रिय प्राण नहीं होते हैं, क्योंकि, जिनके ज्ञानावरणादि कर्म नष्ट हो गये हैं ऐसे क्षीणावरण सयोगिकेवलीमें आवरण कर्मोका क्षयोपशम नहीं पाया जाता है, और इसलिये उनके क्षयोपशम लक्षण भावेन्द्रियां भी नहीं पाई जाती हैं। तथा इन्द्रिय प्राणोंमें द्रव्येन्द्रियोंसे प्रयोजन है नहीं; क्योंकि, अपर्याप्तकालमें पांचों इन्द्रिय प्राणों के आस्तित्वका प्रतिपादन करनेवाला सत्प्ररूपणाका सूत्र देखा जाता है। मनोबलप्राण, वचनबलप्राण, और श्वासोच्छ्वासप्राण भी औदारिकमिश्रकाययोगी सयोगिकेवलीके नहीं होते हैं। क्योंकि, मनः पर्याप्ति, वचन पर्याप्ति और आनापान पर्याप्ति संशिक पौगलिक स्कंधोंसे निर्मित
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१ सं. सू. ३७, ६१, ७६. नं. २७७ औदारिकमिश्रकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके आलाप. | गु. जी. प. प्रा.सं. ग. का. यो. वे. क. ज्ञा. संय. द. ले. भ. स. संक्षि. आ. उ. |
१ अवि.सं.अ. अ.
मति. असं.के.द. का. भ. क्षा. सं. आहा. साका. विना. भा.६ क्षायो.
अना. अव.
पंचे. . त्रस.-1
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