Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे जोग-आलाववण्णणं
[६५७ सासणसम्मादिविणो तेउ-पम्म-सुक्कलेस्सासु वट्टमाणा णट्ट-लेस्सा होऊण तिरिक्खमणुस्सेसुप्पज्जमाणा उप्पण्ण-पढम-समए चेव किण्ह-णील-काउलेस्साहि सह परिणमंति सम्माइट्ठिणो तहा ण परिणमंति, अंतोमुहुत्तं पुबिल्ल-लेस्साहि सह अच्छिय अण्णलेस्सं गच्छंति । किं कारणं ? सम्माइट्ठीणं बुद्धि-ट्ठिय-परमेट्ठीणं मिच्छाइट्ठीणं मरणकाले संकिलेसाभावादो । णेरइय-सम्माइट्ठिणो पुण चिराण-लेस्साहि सह मणुस्सेसुप्पज्जति ।
ओंके होनेका कारण यह है कि जिसप्रकार तेज, पद्म और शुक्ल लेश्याओंमें, वर्तमान मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि देव तिर्यंच और मनुष्यों में उत्पन्न होते समय नष्टलेश्या होकरके अर्थात् अपनी अपनी पूर्व शुभ लेश्याओंको छोड़कर (तिर्यंच और मनुष्योंमें) उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें ही कृष्ण, नील और कापोत लेश्यारूपसे परिणत हो जाते हैं, उसप्रकारसे सम्यग्दृष्टि देव अशुभ लेश्यारूपसे नहीं परिणत होते हैं, किन्तु तिर्यंच और मनुष्यों में उत्पन्न होनेके प्रथमसमयसे लगाकर अन्तर्मुहूर्ततक पूर्व भवकी लेश्याओंके साथ रह कर पीछे अन्य लेश्याओंको प्राप्त होते हैं, अतएव यहांपर छहों लेश्याएं बन जाती हैं।
शंका---तिर्यंच और मनुष्योंमें उत्पन्न होनेवाले सम्यग्दृष्टि देव अन्तर्मुहूर्ततक अपनी पहली लेश्याओंको नहीं छोड़ते हैं, इसका क्या कारण है ?
समाधान-इसका कारण यह है कि बुद्धिमें स्थित है परमेष्ठी जिनके अर्थात् परमेष्ठीके स्वरूप चिन्तवनमें जिनकी बुद्धि लगी हुई है ऐसे सम्यग्दृष्टि देवोंके मरणकालमें मिथ्यादृष्टि देवोंके समान संक्लेश नहीं पाया जाता है; इसलिये अपर्याप्तकालमें उनकी पहलेकी शुभलेश्याएं ज्योंकी त्यों बनी रहती हैं।
विशेषार्थ-'सम्माइट्ठीणं बुद्धि-हिय-परमेट्ठीणं मिच्छाइट्ठीणं मरणकाले संकिलेसाभावादो' इस वाक्यके दो अर्थ संभव है। एक तो यह कि मरणके समय मिथ्यादृष्टियोंको जिसप्रकार संक्लेश होता है उसप्रकार जिनकी बुद्धिमें परमेष्ठी स्थित हैं ऐसे सम्यदृष्टि देवोंको मरणके समय संक्लेश नहीं होता है। तथा दूसरा अर्थ इसप्रकारसे होता है कि सम्यग्दृष्टि देवोंके और जिनकी बुद्धि में परमेष्ठी स्थित हैं ऐसे मिथ्यादृष्टि देवोंके मरणके समय संक्लेश नहीं पाया जाता है। प्रथम अर्थ करते समय 'मिच्छाइट्ठीणं' पदके आगे 'इव' पदकी अपेक्षा है और दूसरा अर्थ करते समय 'च' पदकी । परंतु 'मिच्छाइट्ठीणं' इस पदके आगे इन दोनों पदों में से कोई भी पद नहीं पाया जाता है और प्रकरणको देखते हुए पहला अर्थ संगत प्रतीत होता है, इसलिये ऊपर अर्थमें पहले अर्थका ही ग्रहण किया है।
____किन्तु नारकी सम्यग्दृष्टि तो अपनी पुरानी चिरंतन लेश्याओंके साथ ही मनुष्योंमें उत्पन्न होते हैं।
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