Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमै जीवहाणं
[१, १. ___ कम्मइयकायजोग-सजोगिकेवलीणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ अपजत्तीओ, दो पाण, खीणसण्णा, मणुसगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, कम्मइयकायजोगो, अवगदवेदो, अकसाओ, केवलणाणं, जहक्खादसुद्धिसंजमो, केवलदंसण, दव्वेण सुक्कलेस्सा छ लेस्साओ वा, भावेण सुक्कलेस्सा चेवः भवसिद्धिया, खइयसम्मत्तं, णेव सण्णिणो णेव असण्णिणो, अणाहारिणो, सागार-अणागारेहि जुगवदुवजुत्ता वा। सुगममजोगीणं ।
एवं जोगमग्गणा समत्ता । वेदाणुवादेण अणुवादो जहा मूलोघो णीदो तहा णेदव्यो। णवरि णव गुणहाणाणि त्ति वत्तव्वं; वेदे णिरुद्धे उवरिमगुणट्टाणाभावादो। अत्थि खीणसण्णा, अवगदजोगो,
कार्मणकाययोगी सयोगिकेवलियोंके आलाप कहने पर-एक सयोगिकेवली गुणस्थान, एक अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, आयु और कायबल ये दो प्राण, क्षीणसंक्षा, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, कार्मणकाययोग, अपगतवेद, अकषाय, केवलज्ञान, यथाख्यातविहारशुद्धिसंयम. केवलदर्शन, द्रव्यसे शुक्ललेश्या, अथवा औदारिकशरीरकी अपेक्षा छहों लेश्याएं होती हैं, किन्तु भावसे शुक्ललेश्या ही होती है। भव्यसिद्धिक, क्षायिकसम्यक्त्व, संशिक और असंशिक इन दोनों विकल्पोंसे रहित, अनाहारक, साकार और अनाकार इन दोनों उपयोगोंसे युगपत् उपयुक्त होते हैं। अयोगी जीवोंके आलाप सुगम ही हैं।
इसप्रकार योगमार्गणा समाप्त हुई। घेदमार्गणाके अनुवादसे कथन करने पर आलापोंका कथन जैसा मूल ओघालापमें लिया गया है पैला यहां पर भी लेना चाहिये । विशेष बात यह है कि यहां आदिके नौ गुणस्थान होते हैं ऐसा कहना चाहिए, क्योंकि वेदनिरुद्ध अवस्थामें अर्थात् वेदोंसे युक्त रहने पर ऊपरके गुणस्थानोंका अभाव है। तथा यहां पर क्षीणसंशा, अपगतयोग, अपगतवेद, अकषाय, अलेश्य,
१ अ प्रतौ ' तं जहा णेदव्वा ' क प्रतौ · जं जहा णेदव्या ' आ प्रती · तम्हा णेवव्वा' इति पाठः । मैं.१९४
कार्मणकाययोगी सयोगिकेवली जिनके आलाप. |गु. जी. । प. प्रा. सं. | ग.| ई. का. यो..। वे. क. ज्ञा. । संय. द. ले. म. स. संक्षि. आ.) उ...
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