________________
६७६ ]
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, १.
लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, सण्णिणो असण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा ।
सिं चैव पञ्जत्ताणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणट्ठाणं, दो जीवसमासा, छ पजत्तीओ पंच पत्तीओ, दस पाण णव पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिण्णि गदीओ, पंचिदियजादी, तसकाओ, दस जोग, इत्थवेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि अण्णाण, असंजमो, दो दंसण, दव्व-भावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, सण्णिणो असण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा ।
२९९
सिं चेव अपत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणट्ठाणं, वे जीवसमासा, छ अपजत्तीओ पंच अपजत्तीओ, सत्त पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिण्णि गदीओ, पंचिदियजादी, तसकाओ, तिण्णि जोग, इत्थिवेदो, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण,
छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिकः मिथ्यात्व, संज्ञिक, असंशिक; आहारक, अनाहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं ।
उन्हीं स्त्रीवेदी मिथ्यादृष्टि जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, संशी-पर्याप्त और असंज्ञी-पर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां; पांच पर्याप्तियां; दशों प्राण, नौ प्राण; चारों संज्ञाएं, नरकगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रि यजाति, सकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, औदारिककाययोग और वैक्रियिककाययोग ये दश योग; स्त्रीवेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिकः मिथ्यात्व, संज्ञिक, असंज्ञिक; आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं ।
उन्हीं स्त्रीवेदी मिथ्यादृष्टि जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर - एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, संज्ञी अपर्याप्त और असंज्ञी - अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों अपर्या प्तियां, पांच अपर्याप्तियां; सात प्राण, सात प्राणः चारों संज्ञाएं, नरकगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, औदारिकमिश्रकाययोग, वैक्रियिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये तीन योगः स्त्रीवेद, चारों कषाय, आदिके दो अज्ञान, असंयम, आदिके
नं. २९९
गु. जी. प. प्रा. सं. ग. इं. का. १ १ ६ १० ४ ३ १ १
मि. सं. प. ५ ९ ति. पंचे. तस. म. ४ स्त्री.
असं.प.
म.
व. ४
Jain Education International
स्त्रीवेदी मिथ्यादृष्टि जीवोंके पर्याप्त आलाप.
4
यो.
२
वे. क. ज्ञा. संय. द. ले. भ. स. संज्ञि. आ. उ. १० १ ४ ३ १ २ द्र. ६ २ १ २ १ अशा असं चक्षु. भा. ६ म. मि. सं. आहा. साका. अच. असं. अना.
अ.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org